पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८८३

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८६२ वायुपुराणम् सावं हतं प्रसेनं तं नाविन्दत्तत्र वै मणिम् । अथ सिंहः प्रसेनस्य शरीरस्याविदूरतः ऋक्षेण निहतो दृष्टः पादैर्ऋक्षस्य सूचितः । परन्वेषयामास गुहामृक्षस्य यादवः महत्यपि बिले वाणीं शुश्राव प्रमदेरिताम् । धात्र्या कुमारमादाय सुतं जाम्बवतो द्विजाः ॥ प्रोतिमत्याsथ मणिना मा रोदीरित्युदीरिताम् धात्र्युवाच प्रसेनमवधोत्सिंहः सिंहो जाम्बता हतः । सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः व्यक्तीकृतं च शब्दं तं तूर्णं सोऽपि ययौ बिलम् | अपश्यच्च बिलाभ्यासे प्रसेनमवदारितम् प्रविश्य चापि भगवांस्तदृक्षबिलमञ्जसा | ददर्श ऋक्षराजानं जाम्बवन्तमुदारधीः युयुधे वासुदेवस्तु बिले जाम्बवता सह | बाहुभ्यामेव गोविन्दो दिवसानेकविंशतिम् प्रविष्टे च बिलं कृष्णे वासुदेवपुरः सराः । पुनर्द्वारवतीमेत्य ह्तं कृष्णं न्यवेदयन् वासुदेवस्तु निर्जित्य जाम्बवन्तं महाबलम् | लेभे जाम्बवतीं कन्यामृक्षराजस्य संमताम् भगवत्तेजसा ग्रस्तो जाम्बवान्प्रसभं मणिम् । सुतां जाम्बवतीमाशु विश्ववसेनाय दत्तवान् ॥३६ ॥४० ॥४१ - ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥४५ ॥४६ ॥४७ ॥४८ नहीं पाया । उसी प्रसेन के शव से थोड़ी दूर सिंह को भी मरा हुआ पाया, वहीं पर रीछ के पद चिह्नो से यह स्पष्ट पता चल रहा था कि रीछ ने सिंह को मारा । तदनन्तर यादव श्रीकृष्ण जी ने रोछ के उन्ही पद चिन्हों से रीछ को गुफा का पता लगाया। उन्होंने उसको त्रिशाल दिल में स्त्री की आवाज सुनौ । द्विजगण ! जाम्बवान की बिल में उसके लड़के को धाय प्रेमपूर्वक स्यमन्तक मणि को दिखलाकर यह कह रही थी कि 'बेटा मत रोओ' इसके अतिरिक्त वह इस प्रकार की बातें भी कह रही थी |३७-४०॥ धाय बोली- प्रसेनजित को सिंह ने मारा सिंह को जाम्बवान् ने मारा, मेरे सुकुमार बेटे ! तुमं मत रोओ। यह स्यमन्तक मणि तुम्हारा है।" धाय को यह वाणी सुनते ही कृष्ण शोघ्रतापूर्वक उस बिल में प्रविष्ट हो गये, विल के समीप ही वे प्रमेनजित् को मारा हुआ देख चुके थे | बिल में शोघ्रतापूर्वक प्रविष्ट होकर परम तेजस्वी उदारवुद्धि भगवान् कृष्ण ने रीछराज जाम्बवान्‌को देखा । और उसी बिल में हो जाम्बवान् के साथ वासुदेव का युद्ध प्रारम्भ हो गया, वाहृद्वारा ही गोविन्द ने इक्कीस दिनों तक युद्ध किया । उधर कृष्ण के बिल में प्रविष्ट हो जाने पर जब देरी होने लगी तो उनके साथियों ने द्वारकापुरी में लौटकर यह बात बतलाई कि कृष्ण तो मारे गये । इधर वासुदेव ने महाबलशाली रीछराज जाम्बवान को पराजित कर उसको सम्मति से जाम्बवती नामक सुन्दरी कन्या को प्राप्त किया ॥४१-४७॥ तेजोबल से अभिभूत होकर जाम्बवान् ने जवरदस्तो अपनी कन्या जाम्बवती को और स्यमन्तकमणि को