पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८६४

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त्रिनवतितमोऽष्याया कथं शुक्रस्य नप्तारं देवयान्या सुतं प्रभो । श्रेष्ठं यदुमतिक्रम्य पुरो राज्यं प्रदास्यसि यदुर्ज्येष्ठस्तव सुतो जातस्तमनु तुर्वसुः । शर्मिष्ठाया सुतो द्रुह्यस्ततोऽनुः पुरुरेव च कथं ज्येष्ठानतिक्रम्य कनीयान्राज्यमर्हति । धर्मतो बोधयामि त्वां धर्मं समनुपालय ययातिरुवाच ब्राह्मणप्रमुखा वर्णाः सर्वे शृण्वन्तु मे वचः । ज्येष्ठं प्रति यथा राज्यं न देयं वै कथंचन मातापित्रोर्वचनकृद्धितपुत्रः प्रशस्यते । मम ज्येष्ठेन यदुना नियोगो नानुपालितः प्रतिकूलः पितुर्यश्च न स पुत्रः सतां मतः । स पुत्रः पुत्रवद्यश्च वर्तते पितृमातृषु यदुनाऽहमवज्ञातस्तथा तुर्वसुनाऽपि च । द्रुह्येण चानुना चैवमप्यवज्ञा कृता भृशम पुरुणा तु कृतं वाक्यं मानितश्च विशेषतः । कनीयान्मम दायादो जरा येन धृता मम ॥ सर्वकामः सर्वकृतः पुरुणा पुत्रकारिणा ८४३ ७७ ॥७८ ॥७६ ॥८० ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८४ को जब राजा ययाति ने इच्छा की तब ब्राह्मणादि चारों वर्गों के लोग उससे यह बात बोले- 'प्रभुवर ! आप शुक्राचार्य के नाती, देवयानी के पुत्र और अपने सबसे बड़े सुपुत्र यदु को छोड़कर पुरु को क्यों राज्य प्रदान कर रहे है । यदु आप के सब बड़े पुत्र हैं, उनसे छोटे तुवँसु हैं, शर्मिष्ठा के पुत्रों में भी सब से बड़े द्रुह्य है, उनसे छोटे अनु हैं, तत्र पुरु हैं, तो फिर यह कैसे हो सकता है कि ज्येष्ठ को छोड़कर सबसे छोटे को राज्य प्रदान किया जाय | मैं धर्म को ओर आप का ध्यान आकृष्ट कर रहा हूँ आप राजा हैं, आपको धर्म का पालन करना चाहिये ।७६-७१। ययाति ने कहा:- ब्राह्मण प्रभृति वर्णों में उत्पन्न सभी को यह मेरी बात सुननी चाहिये कि मैं अपने ज्येष्ठ पुत्र को किसी प्रकार भी अपना राज्य नहीं देना चाहता | माता और पिता की आज्ञा पालन करनेवाला ही सच्चा पुत्र कहा जाता है, वही प्रशंसायोग्य पुत्र है, मेरे ज्येष्ठ पुत्र यदु ने मेरी आज्ञा का पालन नही किया है । जो पुत्र पिता की आज्ञा के प्रतिकूल चलनेवाला होता है, उस पुत्र को सज्जन लोग नहीं पसन्द करते । पिता और माता का अनुगमन करनेवाला ही सच्चा पुत्र है 1८०-८२ | यदु ने मेरी अवज्ञा की है, इसी प्रकार तुर्वसु, द्रुह्य, और अनु ने भी मेरो आज्ञा न मानकर अपमान किया है। पुरु ने मेरी आज्ञा ही केवल नहीं मानी है; प्रत्युत विशेष सम्मान भी किया है, वही सब से छोटा होते हुए भी हमारे राज्य का उत्तराधिकारी है, क्योंकि उसी ने हमारी वृद्धावस्था को इतने दिनों तक वहन किया है। एक योग्य पुत्र की भांति पुरु ने मेरी सभी अभिलाषाओं और आज्ञाओ की पूर्ति की है, वही हमारा सब कुछ करने धरनेवाला है |८३-८४॥ स्वयं