पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८६०

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त्रिनवतितमोऽध्यायः द्रुह्म त्वं प्रतिपद्यस्व वर्णरूपविनाशिनीम् । जरां वर्षसहस्रं वै यौवनं स्वं ददस्व मे पूर्ण वर्षसहस्त्रे ते प्रतिदास्यासि यौवनम् | स्वं चाऽऽदास्यामि भूयोऽहं पाप्मानं जरया सह द्रुह्य उवाच न गजं न रथं नाश्वं जीर्णो भुङ्क्ते न च स्त्रिम् | न सङ्गश्वास्य भवति न जरां तेन कामये ययातिरुवाच ८३ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥५० यस्त्वं मे हृदयाज्जातो वयः स्वं न प्रयच्छसि । तस्माद्ब्रह्म प्रियः कामो न ते संपत्स्यते क्वचित् ॥४६ नौप्लवोत्तरसंचारस्तत्र नित्यं भविष्यति । अराजभ्राजवंशस्त्वं तत्र नित्यं भविष्यसि अनो त्वं प्रतिपद्यस्व पाप्मानं जरया सह । एवं वर्षसहस्रं तु चरेयं यौवनेन ते ॥५१ के बड़े पुत्र द्रुह्यु से यह बात कही, प्रिय पुत्र द्रुहू यु ! वर्ण एवं रूप के विनाशक इस मेरी वृद्धता को तुम स्वीकार कर लो, एक सहस्र वर्ष के लिए अपनो यौवनावस्था मुझे प्रदान कर दो । एक सहस्र वर्ष व्यतीत हो जाने पर तुम्हारी यौवनावस्था मैं तुम्हें वापस कर दूंगा और उसी समय संमस्त पापकर्मो समेत अपनी वृद्धता तुमसे वापस ले लूंगा ॥४५-४७ द्रुह्यु ने कहाः - पिता जी ! वृद्ध पुरुष न तो हाथी पर चढ़ सकता है, न घुड़सवारी का आनन्द लूट सकता है न अच्छे सुस्वादु अन्न का ही भोग कर सकता है, न सुन्दरी स्त्री हो उसके लिए आनन्ददायिनी हो सकती है। कोई वृद्ध पुरुष के पास बैठना भी नहीं चाहता, इन कारणों से मै तुम्हारी इस वृद्धता को पसन्द नही करता ॥४८॥ ययाति बोले:- द्रुह यु ! तुम मेरे हृदय से उत्पन्न होकर भी अपनी अवस्था मुझे नहीं दे रहे हो । अतः तुम्हारा मनचाहा कभी नही और कही नही सम्पन्न होगा, जिस देश मे लोग सर्वदा नाव और छोटी-छोटी नौकाओं तथा धन्नइयों द्वारा जा सकते हैं, जहाँ पर राजवंश का सर्वथा अभाव तथा सुन्दरता को नितान्त कमी रहेगी, वहां पर तुम्हें सर्वदा निवास करना पड़ेगा। द्रुह्य को इस प्रकार शाप देकर राजा ययाति ने अनु से कहा, अनु ! मेरी वृद्धावस्था तथा पापकर्मो को तुम ले लो, इस प्रकार एक सहस्र वर्ष तक तुम्हारी यौवनावस्था से मैं विषयों का उपभोग करना चाहता हूँ I४६-५१०