पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८५९

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८३८ वायुपुराणम् (#यौवन चरेयं वै विषयांस्तव पुत्रक | पुर्णे वर्षसहस्रे ते प्रतिदास्यामि यौवनम् ॥ स्वं चैव प्रतिपत्स्यामि पाप्मानं जरया सह तुर्वसुरुवाच न कामये जरां तात कामभोगप्रणाशिनीम् | जराया बहवो दोषाः पानभोजनकारिणः । तस्माज्जरां न ते राजन्ग्रहीतुमहमुत्सहे ययातिरुवाच यस्त्वं मे हृदयाज्जातो दयः स्वं न प्रयच्छसि । तस्मात्प्रजा समुच्छेदं तुर्वसो तव यास्यति असंकीर्णा च धर्मेण प्रतिलोमवरेषु च । पिशिताशिषु चान्येषु मूढ राजा भविष्यसि गुरुदारप्रसक्तेषु तिर्यग्योनिगतेषु वा । पशुधर्मेषु म्लेच्छेषु भविष्यसि न संशयः सूत उवाच एवं तु तुर्वसुं शप्त्वा ययातिः सुतमात्मनः । शर्मिष्ठायाः सुतं द्रुह्यमिदं वचनमब्रवीत् ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥४५ यौवनावस्था तुम्हे वापस कर दूंगा, और निश्चय हो उस समय में अपने पाप और बृद्धावस्था को ले लूंगा ३८४०१ तुर्वसु ने कहा:-तात ! ऐच्छिकभोगों को नष्ट करनेवाली, विपयादि सुखों से वंचित करनेवाली तुम्हारी बृद्धता को मैं पसन्द नही कर सकता । राजेन्द्र ! इस वृद्धता से तो भोजन पानादि में भी बड़ी अड़चनें पडती हैं। इसलिए उस वृद्धता के ग्रहण करने का उत्साह मुझमें नही है ॥४१॥ ययाति बोलेः –तुवंसो ! मेरे हृदय से उत्पन्न होकर भी तुम मेरे लिए अपनी अवस्था नही दे रहे हो, अतः तुम्हारी सन्ततियाँ नाश को प्राप्त होंगी। प्रतिलोम रीति से वे संकरवर्ण की हो जायेंगी । धर्मं से च्युत मांसाहारी एवं अन्य दुराचारों में निरत रहनेवाली प्रजाओ के तुम राजा होगे | गुरु की स्त्री के साथ गमन करनेवाले, नीच योनियों में जन्म धारण करनेवाले पशु के समान अविवेकशील, म्लेच्छों के देश के तुम राजा होगे—–——इसमें सन्देह नहीं है ॥४२-४४॥ सूत बोलेः – ऋषिवृन्द ! राजा ययाति ने इस प्रकार अपने पुत्र तुर्वसु को शाप देने के उपरान्त शर्मिष्ठा

  • धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः क. पुस्तके नास्ति |