पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८४५

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८२४ वायुपुराणम् अथ च त्वं पुनश्चैव आयुर्वेदं विधास्यसि । अवश्यंभावी ह्यर्थोऽयं प्राक्सृष्टस्त्वब्जयोनिना द्वितीयं द्वापरं प्राप्य भविता त्वं न संशयः | तस्मात्तस्मै वरं दत्त्वा विष्णुरन्तर्दधे ततः द्वितीये द्वापरे प्राप्ते शौनहोत्रः प्रकाशिराट् । पुत्रकामस्तपस्तेपे नृपो दीर्घतपास्तथा अजं देवं तु पुत्रार्थे ह्यारिराधयिषुर्नृपः | वरेण च्छन्दयामास प्रोतो धन्वन्तरिनृ पम् नृप उवाच भगवन्यदि तुष्टस्त्वं पुत्रो मे धृतिमान्भव । तथेति समनुज्ञाय तत्रैवान्तरधीयत तस्य गेहे समुत्पन्नो देवो धन्वन्तरिस्तदा । काशिराजो महाराजः सर्वरोगप्रणाशनः आयुर्वेदं भरद्वाजश्वकार सभिषविक्रयम् । तमष्टधा पुनर्व्यस्य शिष्येभ्यः प्रत्यपादयत् धन्वन्तरिसुतश्चापि केतुमानिति विश्रुतः । अथ केतुमतः पुत्रो विप्रो भीमरथो नृपः ॥ दिवोदास इति ख्यातो वाराणस्यधिपोऽभवत् एतस्मिन्नेव काले तु पुरी वाराणसी पुरा । शून्यां विवेशयामास क्षेमको नाम राक्षसः ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ बाद तुम आयुर्वेद का उद्धार करोगे, यह सब बातें अवश्य घटित होगी। इन्हीं के लिये पद्ययोनि ब्रह्माजी ने तुम्हारी सृष्टि पूर्वकाल में को है । द्वितीय द्वापर युग में तुम आविर्भूत होगे -- इसमें कोई सन्देह नही है ।' उस समय ऐसा वरदान देकर भगवान् विष्णु अन्तर्हित हो गये |१६ - १७॥ द्वितीय द्वापर युग में काशिराज सुनहोत्र ( सुतहोत्र) के वंश में उत्पन्न होनेवाले राजा दीर्घतपा ने पुत्र प्राप्ति की कामना से तपस्या की थी। उस तपस्या में राजा ने पुत्र के लिये उन्हीं अज देव की आराधना की थी। प्रसन्न होकर धन्वन्तरि ने राजा दीर्घतपा को वरदान देने की बात कही । १८-१९ में राजा बोले – भगवन् ! यादि आप मेरे ऊपर प्रसन्न है, तो आप हो मेरे धर्मशाली पुत्र के रूप में उत्पन्न हों ।' देव धन्वन्तरि राजा की प्रार्थना स्वीकार कर वही अर्न्तधान हो गये । तत्पश्चात् वन के अनुसार द्वितीय द्वापर युग में देव धन्वन्तरि राजा दोघंतपा के पुत्र रूप में उत्पन्न हुए। बाद में चलकर वे महाराजाधिराज, काशिराज सभी रोगों के विनाश करनेवाले हुए | २० - २१ | भरद्वाज ऋषि ने ओषधियों की समस्त प्रक्रियाओं के साथ आयुर्वेद का प्रणयन किया था राजा ने उसो को पुनः आठ भागों में विभक्तकर अपने शिष्यों को उसको शिक्षा दी थो । धन्वन्तरि के पुत्र केतुमान् नाम से विख्यात हुए, केतुमान् के पुत्र परम प्रताप शाली राजा भीमरथ हुए | वही राजा भीमरथ वाराणसी के परम प्रसिद्ध राजा दिवोदास के नाम से विख्यात हुए । प्राचीन काल में इसी राजा के राज्य काल मे वाराणसी पुरी सूनी हो गई थी और उसमे क्षेमक नामक राक्षस घुस आया था ।२२-२४| प्राचीन काल में महान् पराक्रमशाली निकुम्भ ने वाराणसी पुरी को यह शाप