पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८४६

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द्विनवतितमोऽध्यायः शप्ता हि सा पुरी पूर्व निकुम्भेन महात्मना | शून्या वर्षसहस्रं वै भवित्रीति पुनः पुनः तस्यां तु शप्तमात्रायां दिवोदासः प्रजेश्वरः | विषयान्ते पुरीं रम्यां गोमत्यां संन्यवेशयत् ऋषय ऊचुः वाराणसों किमर्थं तां निकुम्भः शप्तवान्पुरा | निकुम्भश्चापि धर्मात्मा सिद्धक्षेत्रं शशाप यः सूत उवाच दिवोदासस्तु राजर्षिर्नगरी प्राप्य पार्थिवः । वसते स महातेजाः स्फीतायां वै नराधिपः एतस्मिन्नेव काले तु कृतदारो महेश्वरः । देव्याः स प्रियकामस्तु वसानः श्वशुरान्तिके देवाज्ञया पारिषदा विश्वरूपास्तपोधनाः । पूर्वोक्तं रूपविशेषैस्तोषयन्ति महेश्वरीस् हृष्यति तैर्महादेवो मेना नैव तु हृष्यति । जुगुप्सते सा नित्यं च देवं देवों तथैव च मम पार्श्व त्वनाचारस्तव भर्ता महेश्वरः । दरिद्रः सर्व एवेह अक्लिष्टं लडतेऽनघे मात्रा तथोक्ता वचसा स्त्रीस्वभान्नचाक्षमत् । स्मितं कृत्वा तु वरदा हयपार्श्वमथागमत् ८२५ ॥२५ ॥२६ ॥२७ ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ ॥३२ ॥३३ दिया था कि यह वाराणसी एक सहस्र वर्ष तक सूनी रहेगी। ऐसी बात उसने बार-बार कही थी । उसके इस प्रकार के शाप देने पर नरपति दिवोदास ने इस वाराणसी पुरी को छोड़कर अपनी मनोहर राजधानी गोमती नदी के तट पर बसाई थी |२५-२६ ऋषियों ने पूछा:- सूत जो ! प्रचीनकाल में निकुंभ ने वाराणसी को क्यों शाप दिया था | परम धर्मात्मा होकर भी उसने सिद्ध क्षेत्र वाराणसी को भला क्यों शाप दिया ? ॥२७॥ में सूत वोले:- राजर्षि दिवोदास वाराणसी नगरी में निवास करता था, उस मनोहर नगरी वह अपने समय का एक महान् शासक एवं परमतेजस्वी राजा था |२८| इसी अवधि में महेश्वर शिव ने पार्वती के साथ पत्नी सम्बन्ध स्थापित किया था और देवी को प्रसन्न करने की नीयत से वे श्वशुर हिमवान् के ही घर में निवास करते थे |२९| महादेव की आज्ञा से उनके पार्षदगण, जो अनेक स्वरूप धारण करनेवाले, किन्तु महान् तेजस्वी थे, पूर्व में कहे गये विचित्र विचित्र रूपों को धारण कर महेश्वरी को प्रसन्न किया करते थे। उनके इस व्यापार से महादेव जी प्रसन्न होते थे किन्तु मेना को इससे प्रसन्नता नहीं होती थी | महादेव और पार्वती दोनो की वह मन में सदा भर्त्सना किया करती थी |३०-३१। एक बार उन्होंने पार्वती से कहा भी, निष्पापे ! तुम्हारे पति महेश्वर हमारे यहाँ नित्य प्रति अनाचार किया करते है ।' मेरी समझ में तो वे एक परम अकिंचन एवं व्यर्थ में नाच गान में लगे हुए लम्पट प्रतीत होते है ।' माता मेना की ऐसी बातों को स्त्री स्वभाव फा०-१०४