पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८४३

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८२२ वायुपुराणस् अथ द्विनवतितमोऽध्यायः चन्द्रवंशकीर्तनम् सूत उवाच एते पुत्रा महात्मानः पञ्चैवाऽसन्महाबलाः | स्वर्भानुतनया विप्राः प्रभायां जज्ञिरे नृपाः नहुषः प्रथमस्तेषां पुत्रधर्मा ततः स्मृतः । धर्मवृद्धात्मजश्चैव सुतहोत्रो महायशाः सुतहोत्रस्य दायादास्त्रयः परमधार्मिकाः । काशः फालश्च द्वावेतौ तथा गृत्समदः प्रभुः पुत्रौ गृत्समदस्यापि शुनको यस्य शौनकः । ब्राह्मणाः क्षत्रियाश्चैव वैश्याः शूद्रास्तथैव च एतस्य वंशे संभूता विचित्रैः कर्मभिद्विजाः । शलात्मजो ह्याष्टिषेणश्चरन्तस्तस्य चात्मजः शौनकाश्चाऽऽष्टिषेणाश्च क्षात्रोपेता द्विजातयः | काशस्य काशयो राष्टः पुत्रो दीर्घतपास्तथा धर्मश्च दीर्घतपसो विद्वान्धन्वन्तरिस्ततः । तपसा सुमहातेजा जातो वृद्धस्य धीमतः । अर्थनमृषयः प्रोचुः सुतं वाक्यमिदं पुनः ॥२ ॥३ ॥४ ॥५ ॥६ ॥७ अध्याय ६२ चन्द्र-वंश - वर्णन सूत बोले – विप्रवृन्द ! पाँच महान् पराक्रमी तथा परम बलवान् स्वर्भानु के पुत्र प्रभा नामक पत्नी में उत्पन्न हुए, जो सव राजा थे । उन सवों में प्रथम गणनीय राजा नहुप थे | उनके बाद पुत्रधर्मा कहे जाते हैं । तदनन्तर धर्मवृद्ध हुए, धर्मवृद्ध के पुत्र परम यशस्वी राजा सुतहोत्र हुए | १ - २ | राजा सुतहोत्र के उत्तराधिकारी तीन परम धार्मिक पुत्र हुए, जिनके नाम काश, शल एव गृत्समद थे | परम प्रभाव शाली राजा गृत्समद के पुत्र शुनक थे, जिनके पुत्र शौनक हुए । द्विजवृन्द ! इस वंश मे उत्पन्न होनेवाली संततियाँ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शुद्र -चारी वर्गों में अपने विचित्र कर्मों द्वारा विभक्त हुई | शाल के पुत्र राजा आष्टिषेण हुए, जिनके पुत्र चरन्त हुये ।३-४। शौनक और आष्टिषेण के वंश में उत्पन्न होनेवाली सन्ततियाँ क्षत्रिय एवं ब्राह्मण दोनों वणों में हैं | काश के काशय, राष्ट्र और दीर्घतपा नामक पुत्र हुए । दीर्घतपा के पुत्र राजा धर्म हुए, धर्म से परम विद्वान् राजा धन्वन्तरि का जन्म हुआ | परम बुद्धिमान् राजा धर्म की वृद्धावस्था में उनकी तपस्या के कारण महान् तेजस्वी धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। इस बात को सुनकर ऋषियों ने सुत से यह बात पूछी ||६-७॥ से