पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८४०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

एकनवतितमोऽध्यायः सर्वविद्यान्तगं श्रेष्ठं धनुर्वेदस्य पारगम् । रामं क्षत्रियहन्तारं प्रदीप्तमिव पावकम् और्वस्यैवमृचीकस्य सत्यवत्यां महामनाः | जमदग्निस्तपोवीर्याज्जज्ञे ब्रह्मविदां वरः ॥ मध्यमत्र शुनःशेपः शुनःपुच्छः कनिष्ठकः ८१६ ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ ॥६७ विश्वामित्रस्तु धर्मात्मा नाम्ना विश्वरथः स्मृतः । जज्ञे भृगुप्रसादेन कौशिकाद्वंशवर्धनः विश्वामित्रस्य पुत्रस्तु शुनः शेपोऽभवन्मुनिः | हरिश्चन्द्रस्य यज्ञे तु पशुत्वे नियतः स वै

  • देवदत्तः शुनः शेपो विश्वामित्राय वै पुनः । देवैर्दत्तः स वै यस्माद्देवरातस्ततोऽभवत्

विश्वामित्रस्य पुत्राणां शुनःशेयोऽग्रजः स्मृतः । मधुच्छन्दो नयश्चैव कृतदेवौ ध्रुवाष्टको कच्छपः पूरणश्चैव विश्वामित्रसुतास्तु वै । तेषां गोत्राणि बहुधा कौशिकानां महात्मनाम् पाथिवा देवराताश्च याज्ञवल्क्याः समर्षणाः । उदुम्बरा उदुम्लानास्तारका यमसुश्वताः लोहिण्या रेणवश्चैव तथा कारीषवः स्मृताः । बभ्रवः पाणिनश्चैव ध्यानजप्यास्तथैव च शालावत्या हिरण्याक्षा स्यकृता गालवाः स्मृताः । देवला यामदूताश्च सालङ्कायनबाष्कलाः ॥१०० ददातिबादराश्चान्ये विश्वामित्रस्य धीमतः । ऋऋष्यन्तरविवाह्यास्ते बहवः कौशिकाः स्मृताः ॥१०१ ॥६८ IEE एवं अग्नि के समान परम तेजस्वी थे | उर्व के पुत्र ऋचीक के सत्यवती में ज्येष्ठ पुत्र महामनस्वी जमदग्नि हुए, उनके तपोबल से मध्यम पुत्र शुनःशेप हुए, जो परम ब्रह्मज्ञानी थे । शुन:पुच्छ ऋचीक के सब से कनिष्ठ पुत्र थे।८६-१२॥ धर्मात्मा विश्वामित्र विश्वरथ के नाम से प्रख्यात थे । महर्षि भृगु की कृपा से ये कौशिक के संयोग से उत्पन्न हुए थे, वे कौशिक वंश में सबसे अधिक प्रभावशाली थे। उन विश्वामित्र के पुत्र शुनःशेप नामक मुनि हुए। वे शुनःशेप राजा हरिशचन्द्र के यज्ञ कर्म में बलिदान देने के लिये नियुक्त हुए थे। देवताओं ने शुनःशेष को पुनः विश्वामित्र को वापस कर दिया। देवताओं के देने के कारण इनका बाद में देवरात नाम पड़ा । विश्वामित्र के पुत्रों में शुनःशेप सब से बड़े कहे जाते हैं। इनके अतिरिक्त मधुच्छन्द, नय, कृत, देव, ध्रुव, अष्टक, कच्छप, और पूरण – ये सब भी विश्वामित्र के पुत्र हैं । इन सबो के गोत्र प्रायः महान् पराक्रमी कौशिकों के ही हैं।६३-९७ पार्थिव, देवरात, याज्ञवल्क्य, समर्षण, उदुम्बर, उदुम्लान, तारक, यममुश्चत, लोहिण्य, रेणव, कारीषु, बभ्रु, पाणिन, ध्यानजप्य, शालावत्य, हिरण्याक्ष, स्यङ्कृत, मालव, देवल, यामदूत, सालङ्कायन, बाष्कल, ददाति एवम् वादर नाम से प्रसिद्ध वंशों में उत्पन्न होनेवालों का परम बुद्धिमान् विश्वामित्र का गोत्र हैं। बहुतेरे कौशिक गोत्र में उत्पन्न होनेवालों का विवाह अन्य ऋषि के गोत्र में उत्पन्न होनेवालों के

  • इदमधं नास्ति क. पुस्तके |

A