पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३९

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

८१८ वायुपुराणम् पुनः सत्यवती वाक्यमेवमुक्त्वाऽब्रवीदिदम् । इच्छल्लाँकानपि मुने सृजेथाः किः पुनः सुतम् शमात्मकमृजुं भर्तः पुत्रं मे दातुमर्हसि । फाममेवंविधः पुत्रो मम स्यात्तु वद प्रभो मय्यन्यथा न शक्यं वै कर्तुमेव द्विजोत्तम । ततः प्रसादमफरोत्स तस्यास्तपसो बलात् पुत्रे नास्ति विशेषो मे पौत्रे वा वरवणनि । त्वया यथोक्तं वचनं तथा भद्रे भविष्यति तस्मात्सत्यवती पुत्रं जनयामास भार्गवम् । तपस्यभिरतं दान्तं जमदग्नि शमात्मकम् मृगोश्चरुविपर्यासे रौद्रवैष्णवयोः पुरा | जमनाद्वैष्णवस्याग्नेर्जमदग्निरजायत विश्वामित्रं तु दायादं गाधिः कुशिकनदनः । प्राप्य ब्रह्मपिसमतां जगाम ब्रह्मणा वृतः सा हि सत्यवती पुण्या सत्यव्रतपरायणा | कौशिकीति समाख्याता प्रवृत्तेयं महानदी परिश्रुता महाभागा कौशिकी सरितां वरा । इक्ष्वाकुवंशे त्वभवत्सुवेणुर्नाम पार्थिवः तस्य कन्या महाभागा कामली नाम रेणुका | रेणुकायां तु कामल्यां तपोधृतिसमन्वितः ॥ आर्चीको जनयामास जमदग्निः सुदारुणम् ॥८१ ॥८२ ॥८३ ॥८४ ॥८५ ॥८६ ।।८७ ॥८८ ॥८६ ॥६० पुनः बोली, मुनिवयं ! आप इच्छा करें तो समस्त लोकों की सृष्टि कर सकते हैं, ऐसे पुत्र को उत्पन्न करने की तो बात हो क्या है ? हे पतिदेव ! मुझे परम शान्त, सरल एवं सत्पुरुप पुत्र दोजिये । यह तो हो सकता है कि हमारा पौत्र उग्र एवं कठोर स्वभाववाला हो । हे प्रभो ! द्विजोत्तम ! अब मेरे लिये यह तो करना हो होगा । आप अन्यथा नही करेंगे- ऐसी विशेष प्रार्थना कर रही हूँ ।" मुनिवर ऋचीक ने अपने तपोबल से उसको मनः कामना पूर्ण कर प्रसन्न किया । वे बोले, सुन्दरि ! मुझे पुत्र या पौत्र किसी में कोई विशेषता नही दिखाई पड़ती, किन्तु तुम्हारा पदि आग्रह ऐसा है तो मैं वैसा ही करूंगा, भद्रे ! तुम्हारो बात सत्य होगी 1८१-८४। ऋचोक के वचनानुसार सत्यवती ने भार्गव जमदग्नि को उत्पन्न किया । वे परमशान्त, क्षमाशील एवं तपः परायण थे । इस प्रकार प्राचीनकाल में रुद्र एवं विष्णु के चरु में परिवर्तन हो जाने से विष्णु एवं अग्नि के तेज के जमन (भक्षण) किये जाने से भृगुवश में जमदग्नि नामक ऋषि उत्पन्न हुए । इधर कुशिकनन्दन गाधि ने विश्वामित्र को पुत्र रूप में उत्पन्न किया, उन विश्वामित्र ने ब्रह्मपियों की समानता प्राप्त कर ब्राह्मणों समेत स्वर्ग को प्रस्थान किया । सत्यव्रत परायण वह सत्यवती परम पुण्यदायिनी महानदी कौशिकी के नाम से प्रवाहित हुई 1८५-८८। महाभाग्यशालिनी, नदियों में श्रेष्ठ कौशिकी को परम ख्याति प्राप्त हुई । इक्ष्वाकु के वंश में सुवेणु नामक एक राजा थे। उनकी कन्या महाभाग्यशालिनी कामली थी, जिसका दूसरा नाम रेणुका भी था, उस कामली रेणुका में परम तपस्वी, धैर्यशील, ऋचीक के पुत्र जमदग्नि ने परम कठोर स्वभाववाले उत्पन्न किया, वे परशुराम सभी विद्याओं में पारंगत, विशेषतया धनुर्वेद के परम जानकार क्षत्रियों के विनाशक को