पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२९

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८०५ वायुपुराणम् ततः संशयमापन्नास्तारामकथयन्सुराः । सत्यं ब्रूहि सुतः कस्य सोमस्याथ वृहस्पतेः ह्रियमाणा यदा देवानाऽऽह सा साध्वसाधु वा । तदा तां शप्तुमारब्धः कुमारो दस्युहन्तमः तं निवार्य तदा ब्रह्मा तारां चन्द्रस्य शंस यः । यदत्र तथ्यं तद्ब्रूहि तारे कस्य सुतस्त्वयम् सा प्राञ्जलिरुवाचेदं ब्रह्माणं वरदं प्रभुम् । सोमस्येति महात्मानं कुमारं दस्युहन्तमम् ततः सुतसुपाघ्राय सोमो दाता प्रजापतिः । बुध इत्यफरोन्नाम तस्य पुत्रस्य धीमतः प्रतिपूर्वं च गमने समभ्युत्तिष्ठते बुधैः । उत्पादयामास तदा पुत्रं वै राजपुत्रिका तस्य पुत्रो महातेजा बसूवैलः पुरूरवाः । उर्वश्यां जज्ञिरे तस्य पुत्राः पट्सुमहौजसः प्रसह्य धषितस्तत्र विवशो राजयक्ष्मणा । ततो यक्ष्माभिभूतस्तु सोमः प्रक्षीणमण्डलः ॥ जगाम शरणायाथ पितरं सोऽत्रिमेव तु तस्य तत्पापशमनं चकारात्रिर्महायशाः । स राजयक्ष्मणा मुक्तः श्रिया जज्वाल सर्वशः एतत्सोमस्य वै जन्म कोर्तितं द्विजसत्तमाः । वंशं तस्य द्विजश्रेष्ठाः कीर्त्यमानं निबोधत ॥३६ ॥४० ॥४१ ॥४२ ॥४३ ॥४४ ॥४५ ॥४६ ।।४७ ॥४८ ही उस परम ऐश्वयंशालो ने देवताओं को हतश्री कर दिया। देवता लोग इससे सन्देह में पड़ गये मौर तारा से कहने लगे, सच सच बतलाओ, यह पुत्र किसका है, चन्द्रमा अथवा बृहस्पति का |३२-३१। देवताओं के इस प्रकार बारम्बार कहने पर भी जब तारा साधु असाघु कुछ नहीं बोल सकी, तब दस्युहन्तम कुमार उमे शाप देने को उतारू हो गया । ग्रह्मा ने कुमार को निवारित कर पुनः तारा से पूछा--तारे ! बतलाओ, इस विषय में सत्य क्या है ? यह किसका पुत्र है, सच-सच बतलाओ, वरदायक, प्रभु ब्रह्मा से हाथ जोड़कर तारा बोली- यह महान् बलशाली दस्युहन्तम कुमार चन्द्रमा का है ॥४०-४२। दाता प्रजापति ने सुत का शिर सूंघकर उस परम बुद्धिमान् का नाम बुध रखा । उस समय बुध पूर्व दिशा में गमन करने के लिये उठ खड़े हुए | राजपुत्री इला के सयोग से बुध ने एक पुत्र उत्पन्न किया । बुध के उस परम तेजस्वी पुत्र का नाम पुरुरवा था, वह इला के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण ऐल नाम से भी विख्यात था । उवंशी में उस बुध पुत्र के छह परमतेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुए, राजयक्ष्मा रोग ने जबरदस्ती आकर चद्रमा को विवश एवं परेशान कर दिया, यक्ष्मा से अतिशय पोड़ित होने पर जब चन्द्रमा का मण्डल क्षोण हो गया, तव वह पितामह ब्रह्मा एवं अत्रि की शरण में गये ॥४३-४६। महान् यशस्वी अत्रि ने चन्द्रमा का पाप शमन किया, राज्यक्ष्मा से मुक्ति प्राप्त कर चन्द्रमा पुनः अपनी कान्ति से चारों ओर प्रकाशित हो उठे । द्विजवृन्द ! यह चन्द्रमा के जन्म का वृत्तान्त आप लोगों को बतला चुका, अब उनके वंश का वर्णन कर रहा हूँ, सुनते जाइये । चन्द्रमा के इस जन्म वृत्तान्त को सुनने पर ने