पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२८

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नैवतितमोऽध्यायः बृहस्पतेः स वै भार्या तारां नाम यशस्विनीम् । जहार सहसा सर्वानवमत्याङ्गिरःसुतान् स याचमानो देवैश्च तथा देवपिभिश्च ह | नैव व्यसर्जयत्तारां तस्मायाङ्गिरसे तदा उशना तस्य जग्राह पाण्णिमङ्गिरसो द्विजाः । स हि शिष्यो महातेजाः पितुः पूर्वं बृहस्पते तेन स्नेहेन भगवान्रुद्रस्तस्य बृहस्पतेः | पाणिग्राहोऽभवदेवः प्रगृह्याऽऽजगवं धनुः तेन ब्रह्मषिमुख्येभ्यः परमास्त्रं महात्मना । उद्दिश्य देवानुत्सृष्टं येनैषां नाशितं यशः तत्र तयुद्धमभवत्प्रत्यक्षं तारकामयम् । देवानां दानवानां च लोकक्षयकरं महत् तत्र शिष्टास्त्रयो देवास्तुषिताश्चैव ये स्मृताः । ब्रह्माणं शरणं जम्नुरादिदेवं पितामहम् ततो निवार्योशनसं रुद्रं ज्येष्ठं च शंकरम् । ददावाङ्गिरसे तारां स्वयमेव पितामहः अन्तर्वत्नी च तां दृष्ट्वा तारां ताराधिपाननाम् । गर्भमुत्सृजसे न त्वं विप्रः प्राह बृहस्पतिः मदोयायां तनौ योनौ गर्भो धार्यः कथं च न । अथो नावसृजत्तं तु कुमारं दस्युहन्तमम् ईषिकास्तम्बमासाद्य ज्वलन्तमिव पावकम् | जातमात्रोऽथ भगवान्देवानामाक्षिपद्वपुः ५०७ ।।२८ ३.२६ ॥३० ॥३२ ॥३३ ॥३४ ॥३५ ॥३७ ॥३८ कर लेने के बाद चन्द्रमा की मति भ्रान्त हो गई, उसके विनय पर अविनय ने अधिकार कर लिया ( अर्थात् वह बड़ा कठोर एवं दम्भी हो गया ) | बृहस्पति की तारा नामक पत्नी को जिनकी बड़ी (स्ययाति) थी, वह अंगिरा के समस्त पुत्रों को कोई परवाह कर, हर ले गया ।२७-२८ | देवताओ और देवषियों के याचना करने पर भी वह तारा को लौटाने को राजी नहीं हुआ । इस प्रकार किसी प्रकार भी उसने बृहस्पति को तारा के लौटाने का इरादा नहीं किया । द्विज वृन्द ! उस समय अंगिरा के पुत्र शुक्र उसके पिछलग्गू ( सहायक ) बने थे । महान् तेजस्वी उशना पहले बृहस्पति के पिता का शिष्य था । उसी स्नेह कारण भगवान् रुद्रदेव उस वृहस्पति के सहायक हुए, और अपना अजगव नामक प्रचण्ड धनुष लेकर उपस्थित हुए |२६-३१। महान् बलशाली रुद्रदेव ने उन प्रमुख ब्रह्मषियों के तथा देवताओं के उद्देश से उस महान् अस्त्र का संधान किया, जिससे उसका यश नष्ट हो गया । प्रत्यक्ष तारकामय नामक युद्ध वहीं मच गया, देवताओं तथा दानवों का वह घोर युद्ध महान् लोकक्षयकारी हुआ |३२-३३ | उस युद्ध में तुषित नाम से प्रसिद्ध तीन देवता शेष बच रहे, वे आदिदेव पितामह ब्रह्मा की शरण में गये । लोक पितामह भगवान् ब्रह्मा ने स्वयं शुक्र को एवं इस विनाश कर्म में प्रवृत्त शंकर को निवारित किया और तारा को वृहस्पति को वापस किया | चन्द्रमा के समान सुन्दर मुखवाली तारा को गर्भ- वती देखकर विप्रवर्य वृहस्पति ने कहा, क्या, तुम अब भी गर्भ त्याग नही कर रही हो ? मेरी भूमि में तुम दूसरे वीर्य का किस प्रकार धारण कर सकती हो ? तारा उस दस्युहन्तम कुमार को इस पर भी नहीं छोड़ सकी थी कि इसी बीच तृण राशि में जलते हुए अग्नि की तरह वह कुमार उत्पन्न हो गया और उत्पन्न होते