पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८३०

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एकनवतितमोऽध्यायः धनमारोग्यमायुष्यं पुण्यं कल्मषशोधनम् । सोमस्य जन्म श्रुत्वैव सर्वपापैः प्रमुच्यते इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते सोमोत्पत्तिकथनं नाम नवतितमोऽध्यायः ॥६०॥ अथैनवतितमोऽध्यायः चन्द्रवंशकीर्तनम् सूत उवाच सोमस्य तु बुवः पुत्रो बुधस्य तु पुरूरवाः । तेजस्वी दानशीलश्च यज्वा विपुलदक्षिणः ● ब्रह्मवादी पराक्रान्तः शत्रुभिर्युधि दुर्जयः । आहर्ता चाग्निहोत्रस्य यज्वनां च ददौ महोम् सत्यवाककर्मबुद्धिश्च कान्तः संवृतमैथुनः । अतीव पुत्रो लोकेषु रूपेणाप्रतिमोऽभवत् ८०६ अध्याय ६१ चन्द्रवंश का वर्णन ॥४६ ॥१ ॥२ ॥३ धन आरोग्य, आयु, पुण्य, एवं पापशान्ति होती है । इसे सुनते ही मनुष्य समस्त पापकर्मों से छुटकारा पा जाता है।४७-४६ श्री वायुमहापुराण में सोमोत्पति कथन नामक नव्वेवां अध्याय समाप्त ॥९०॥ सूत बोले- "ऋषिवृन्द ! चन्द्रमा के पुत्र बुध और बुध के पुत्र पुरुरवा हुए। राजा पुरूरवा परमतेजस्वी, दानी, यज्ञकर्ता एवं विपुल दक्षिणा देने वाला था । वह ब्रह्मवेत्ता था, शत्रुलोग युद्ध में उसे किसी प्रकार भी नहीं जीत सकते थे, शत्रुओं का तो उसने विध्वंश कर डाला था। वह अग्निहोत्र का उपासक था, यज्ञ करनेवालों को उसने सारी पृथ्वी दान में दे दी थी |१-२॥ वह सर्वदा सत्य वचन बोलता था, कर्मशील एवं परम बुद्धिमान् था, देखने में परम सुन्दर था, वह गुप्त या उच्छृंखलता रहित मैथुन वाला था, लोक में वह एक फा०-१०२