पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२६

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नवतितमोऽध्यायः यदा न धारणे शक्तास्तस्य गर्भस्य ताः स्त्रियः । ततः स ताभिः शीतांशुनिपपात वसुंधराम् पतन्तं सोममालोक्य ब्रह्मा लोकपितामहः । रथमारोपयामास लोकानां हितकाम्यया स हि देवमयो विशा धर्मार्थी सत्यसंगरः । युक्तो वाजिसहस्रेण सितेनेति हि नः श्रुतम् तस्मिन्निपतिते देवाः पुत्रेऽत्रेः परमात्मनि । तुष्टुवुर्ब्रह्मणः पुत्रा मानसाः सप्त विश्रुताः तत्रैवाङ्गिरसस्तस्य भृगोवाऽत्मजस्तथा। ऋग्भिर्यजुभिर्बहुभिरथर्वाङ्गिरसैरपि ततः संस्तूयमानस्य तेजः सोमस्य भास्वतः | आप्यायमानं लोकांस्त्रीन्भावयामास सर्वशः स तेन रथमुख्येन सागरान्तां वसुंधराम् | त्रिःसप्तकृत्वो विपुलश्चकाराभिप्रदक्षिणम् तस्य यच्चापि तत्तेजः पृथिवीमन्वपद्यत । ओषध्यस्ताः समुद्धृतास्तेजसा संज्वलन्त्युत ताभिर्धार्यत्ययं लोकान्प्रजात्रापि चतुर्विधाः | पोष्टा हि भगवान्सोमो जगतो हि द्विजोत्तमाः स लब्धतेजास्तपसा संस्तवैस्तैश्च कर्मभिः | तपस्तेपे महाभागः पद्यानां दशतीर्दश ८०५ ॥८ HIE ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ वह गर्भं चब थोड़ी देर के लिए भी दिशाओं द्वारा धारण नहीं किया जा सका, और वे सब स्त्रियाँ अशक्त हो गईं, तब समस्त लोकों का मनोभावन, शीतल किरणोंवाला वह गर्भ उनके उदर से निकलकर समस्त लोकों को प्रकाशमय करता हुआ पृथ्वी पर गिर पड़ा। लोक पितामह ब्रह्मा जी ने इस प्रकार गिरते हुए सोम को लोक कल्याणार्थ अपने रथ पर बिठा लिया | ६-६ | विप्रगण ! वह चन्द्रमा दिव्यगुण सम्पन्न हैं, धर्मार्थ में निरत रहने वाले एवं सत्यप्रतिज्ञ हैं, हमने ऐसा सुना है कि वे एक सहस्र श्वेत घोड़ों के रथ पर विराजमान रहते हैं। अत्रि के पुत्र, परम तेजोमय चन्द्रमा के इस प्रकार पृथ्वी पर गिरने पर देवताओं एवं ब्रह्मा के परम विख्यात सातों मानस पुत्रों ने उनकी स्तुति की | अंगिरा एवं भृगु के पुत्रों ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद एवं आंगिरस के मंत्रों से उनकी विधिवत् स्तुति की |१०-१२। इन सबों से स्तुति किये जाते हुए परम तेजस्वी चन्द्रमा के तेज ने तीनों लोकों को सन्तुष्ट कर दिया, सब को अपने शान्त स्निग्ध प्रकाश से सुप्रसन्न कर दिया । महान् चन्द्रमा ने उस समय ब्रह्मा जो के उस रथ पर विराजमान होकर सागर पर्यन्त विस्तृत पृथ्वी को इक्कीस बार प्रदक्षिणा की |१३-१४| चन्द्रमा का जो तेज पृथ्वी पर गिर पड़ा था, वह ओषधियों के रूप में परिणत हो गया, आज भी a ओषधियाँ चन्द्रमा के तेज से जाज्वल्यमान रहती हैं । चन्द्रमा उन्ही ओषधियों द्वारा समस्त लोकों एवं चार प्रकार की प्रजाओं का पालन करता है द्विजवर्यगण ! इस समस्त चराचर जगत् के पुष्टि देनेवाले परम ऐश्वर्य- शाली भगवान् चन्द्रमा ही एकमात्र हैं। अत्रि के उस परम तपोबल से, देवताओं और ऋषियों की स्तुतियो से तथा अपने शुभ कर्मों द्वारा परम तेजोवल प्राप्त कर महाभाग्यशाली चन्द्रमा दश पद्म वर्षो तक घोर तपस्या में लगे रहे ।१५-१७१ सुवर्ण के समान शुभ्र वर्णोवाली जो देवियाँ अपने में इस समस्त चराचर जगत् को धारण करती I