पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२४

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नवाशीतितमोऽध्यायः सूत उवाच अग्निक्षेत्रे कृष्यमाणे अश्वमेधे महात्मनः । विधिना सुप्रयुक्तेन तस्मात्सा तु समुत्थिता सीरध्वजात्तु जातस्तु भानुमान्नाम मैथिलः । भ्राता कुशध्वजस्तस्य स काश्याधिपतिनृपः तस्य भानुमतः पुत्रः प्रद्युम्नश्च प्रतापवान् | मुनिस्तस्य सुतश्चापि तस्मादूर्जवहः स्मृतः ऊर्जवाहात्सुतद्वाजः शकुनिस्तस्य चाऽऽत्मजः । स्वागतः शकुनेः पुत्रः सुवर्चास्तत्सुतः स्मृतः श्रुतो यस्तस्य दायादः सुश्रुतस्तस्य चाऽऽत्मजः । सुश्रुतस्य जयः पुत्रो जयस्य विजयः सुतः विजयस्य ऋतः पुत्र ऋतस्य सुनयः स्मृतः । सुनयाद्वीतहव्यस्तु वीतहव्यात्मजो धृतिः घृतेस्तु बहुलाश्वोऽभूद्बहुलाश्वसुतः कृतिः । तस्मिन्संतिष्ठते वंशो जनकानां महात्मनाम् ॥ इत्येते मैथिलाः प्रोक्ताः सोमस्यापि निबोधत इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते मैथिलवंशानुकीर्तनं नाम नवाशीतितमोऽध्यायः ॥८६॥ ८०३ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥ २३ सूत ने कहा - "अश्वमेध यज्ञ के अवसर पर महाराज सीरध्वज ने विधिपूर्वक जिस अग्निक्षेत्र का कर्षण किया उसी से सीता का जन्म हुआ। उस राजा सोरध्वज से भानुमान् का जन्म हुआ, जो मैथिल नाम से विख्यात था । उसका भाई कुशध्वज था, जो काशी का राजा हुआ । उम राजा भानुमान् का पुत्र प्रतापशालो प्रद्युम्न हुआ, उसका पुत्र मुनि था, मुनि से ऊर्जवह की उत्पत्ति कही जाती है ।१७-१६। ऊर्जवह से-सुतद्वाज की उत्पत्ति हुई, उसका पुत्र शकुनि हुआ, उस शकुनि का पुत्र स्वागत हुआ, जिसका पुत्र सुत्रर्चा कहा जाता है। सुवर्चा का पुत्र श्रुत और श्रुत का पुत्र सुश्रुत हुआ । सुश्रुत का पुत्र जय और जय का पुत्र विजय हुआ ।२०-२१ | विजय का पुत्र ऋत और ऋत का पुत्रसुनय कहा जाता है, सुनय से वीतहव्य की उत्पत्ति हुई, वीतहव्य का पुत्र धृति हुआ । घृति का पुत्र बहुलाश्व हुआ, बहुलाव का पुत्र कृति हुआ । इसी राजा कृति तक महान् प्रतापी जनक नाम धारी राजाओं का वंश प्रतिष्ठित माना जाता है । मैथिल नामधारी राजाओं का वर्णन किया जा चुका अव चन्द्रमा के वंश का भी वर्णन सुनिये ।" |२२-२३॥ श्री वायुमहापुराण मे मैथिल वंशानुकीर्तन नामक नवासीर्वां अध्याय समाप्त ॥८६॥