पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२३

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८०३ वायुपुराणम् उदावसो: सुधर्मात्मा जनितो नन्दिवर्धनः । नन्दिवर्धनतः शूरः सुकेतुर्नाम धार्मिक: सुकेतोरपि धर्मात्मा देवरातो महाबलः । देवरातस्य धर्मात्मा वृहदुत्थ इति श्रुतिः वृहदुत्थस्य तनयो महावीर्यः प्रतापवान् | महावीर्यस्य धृतिमान्सुधृतिस्तस्य चाऽऽत्मजः सुधृतेरपि धर्मात्मा धृष्टकेतुः परंतपः | धृष्टकेतुसुतश्चापि हर्यश्वो नाम विश्रुतः हर्यश्वस्य मरुः पुत्रो मरोः पुत्रः प्रतित्वकः । प्रतित्वकस्य धर्मात्मा राजा कोतिरथः सुतः पुत्रः कीतिरथस्यापि देवमोढ इति श्रुतः । देवमोढस्य विबुधो विवुधस्य सुतो धृतिः महाधृतिसुतो राजा कोतिराजः प्रतापवान् । कोतिराजात्मजो विद्वान्महारोमेति विश्रुतः महारोग्णस्तु विख्यातः स्वर्णरोमा व्यजायत । रवर्णरोमात्मजश्चापि ह्रस्वरोमाऽभवन्नृपः हस्वरोमात्मजो विद्वान्सोरध्वज इति श्रुतिः | उद्भिन्ना कृषता येन सोता राज्ञा यशस्विनी ॥ रामस्य महिषी साध्वी सुव्रताऽतिपतिव्रता शांशपायन उवाच कथं सोता समुत्पन्ना कृष्यमाणा यशस्विनी । किमर्थ चाकृषद्राजा क्षेत्रं यस्मिन्बभूव सा ॥८ HIE ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ ॥१४ ॥१५ ॥१६ वर्धन की उत्पत्ति हुई । नन्दिवर्धन से वीर एवं धार्मिक सुकेतु की उत्पत्ति हुई |७| सुकेतु के भो धर्मात्मा एव महाबलवान् देवरात उत्पन्न हुए । उन देवरात से धर्मात्मा राजा बृहदुत्थ की उत्पत्ति सुनी जाती है। राजा वृहद्रुत्थ के पुत्र परम प्रतापी महावीर्य नाम से विख्यात थे, महावीर्य के पुत्र घृतिमान् थे, उनके पुत्र सुधृति थे । सुधृति के पुत्र परम तपस्वी एवं धर्मात्मा घृष्टकेतु थे । धृष्टकेतु के पुत्र हर्यश्व भी परम विख्यात राजा थे ॥२-१ । हर्यश्व के पुत्र मरु और मरु के पुत्र प्रतित्वक हुए । प्रतित्वक के परम धर्मात्मा राजा कीर्तिरथ थे । राजा कीतिरथ के पुत्र देवमीढ़ नाम से प्रसिद्ध थे । देवमीढ़ के पुत्र विबुध और विबुध के पुत्र घृति हुए ।११-१२। उस राजा महाघृति के पुत्र परम प्रतापणाली राजा कोतिराज हुए। कीर्तिराज के पुत्र परम विद्वान् राजा महारोमा नाम से विख्यात थे । राजा महारोमा के पुत्र स्वर्णरोमा हुए। स्वर्णरोमा के पुत्र राजा ह्रस्वरोमा हुए | ह्रस्वरोमा के पुत्र राजा सीरध्वज सुने जाते है । उन्ही राजा सोरध्वज के पृथ्वी जोतते समय परम यशस्विनी सीता देवी का प्रादुर्भाव हुआ - ऐसी प्रसिद्ध है । वे सीता रामचन्द्र की परम साध्वी पतिव्रता सद्व्रतपरायणा पत्नी थीं ।।१३-१५ । शांशपायन बोले- सूत जी ! पृथ्वी जोतते समय परम यशस्विनी सीता देवी का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ ? और राजा सीरध्वज किस प्रयोजन वश उस क्षेत्र को जोत रहे थे । जिसमें सीता की उत्पत्ति हुई ? |१६|