पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२२

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. नवाशोतितमोऽध्यायः अथ नवाशीतितमोऽध्यायः वैवस्वतमनुवंशकीर्तनम् सूत उवाच अनुजस्य विकुक्षेस्तु निमेवंशं निबोधत | योऽसौ निवेशयामास परं देवपुरोपमम् जयन्तमिति विख्यातं गौतमस्याऽऽश्रमाभितः । यस्यान्ववाये जज्ञे वै जनकादृषिसत्तमात् नेमिर्नाम सुधर्मात्मा सर्वसत्त्वनमस्कृतः । आसीत्पुत्रो महाराज्ञ इक्ष्वाकोर्भूरितेजसः स शापेन वसिष्ठस्य विदेहः समपद्यत । तस्य पुत्रो मिथिर्नाम जनितः पर्वभिस्त्रिभिः अरण्यां मध्यमानायां प्रादुर्भूतो महायशाः । नाम्ना मिथिरितिख्यातो जननाज्जनकोऽभवत् + मिथिर्नाम महावीर्यो येनासौ मिथिलाऽभवत् । राजासौ जनको नाम जनकाच्चाप्युदावसुः ८०१

  • अत्र समासान्ताभाव आर्ष: । + इदमर्ध नास्ति ख. घ. पुस्तकयोः ।

फा०-१०१ ॥१ ॥२ ॥३ ॥४ 118 ॥६ अध्याय दह वैवस्वत मनु के वंश का वर्णन - सुत बोले - ऋषिवृन्द ! तदनन्तर विकुक्षि के अनुज राजा निमि के वंश का वर्णन सुनिये | इन राजा निमि ने गौतम के आश्रम के चारों ओर जयन्त नामक परम सुन्दर एक पुर की स्थापना की थी, जो देवपुर के समान मनोहर एवं रम्य था । उन्ही निमि के वंश में ऋषि सत्तम जनक से नेमि नामक परम धर्मात्मा राजा उत्पन्न हुआ, जो सभी द्वारा नमस्करणीय था । ।१-२३। परम तेजस्वी महाराज इक्ष्वाकु से जो पुत्र उत्पन्न हुआ, वह महर्षि वसिष्ठ के शाप से विदेह (शरीर रहित ) हो गया । विदेह के अरणी के तीन पर्वो के मंथन करने • से महान् तेजस्वी मिथि नामक पुत्र हुये, मिथि नाम से ही उनकी ख्याति हुई, इस प्रकार के जनन (उत्पत्ति ) होने के कारण उनका जनक नाम भी प्रसिद्ध हुआ। वे मिथि परम बलवान् राजा थे, उन्हीं के नाम पर मिथिला- पुरी की ख्याति हुई । इसी राजा जनक से राजा उदावसु की उत्पत्ति हुई |३ - ६ | उदावसु से धर्मात्मा राजा नन्दि