पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२१

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

८०० वायुपुराणम् शतानि संहितानां तु पञ्च योऽधीतवांस्ततः । तस्मादधिगतो योगो याज्ञवल्क्येन घीमता पुण्यस्तस्य सुतो विद्वान्ध्रुवसंधिश्च तत्सुतः । सुदर्शनस्तस्य सुतः अग्निवर्णः सुदर्शनात् अग्निवर्णस्य शीघ्रस्तु शीघ्रकस्य मनुः स्मृतः । मनुस्तु योगमास्थाय कलापग्राममास्थितः ॥ एकोनविंशप्रयुगे क्षत्रप्रावर्तकः प्रभुः ॥२०८ ॥२०६ ॥२१० ॥२११ ॥२१२ प्रसुश्रुतो मनोः पुत्रः सुसंधिस्तस्य चाऽऽत्मजः । सुसंधेश्च तथा मर्षः सहस्वान्नाम नामतः आसीत्सहस्वतः पुत्रो राजा विश्रुतवानिति । तस्याऽऽसोद्विश्रुतवतः पुत्रो राजा वृहद्वलः एते इक्ष्वाकुदायादा राजानः प्रायशः स्मृताः । वंशे प्रधाना ये तेऽस्मिन्प्राधान्येन तु कीर्तिताः ||२१३ पठन्सम्यगिमां सृष्टिमादित्यस्य विवस्वतः । प्रजावानेति सायुज्यं मनोवैवस्वतस्य सः श्राद्धदेवस्य देवस्य प्रजानां पुष्टिदस्य च । विपाप्मा विरजश्चैव आयुष्मान्भवतेऽच्युतः ॥ + अपुत्रो लभते पुत्रं दीर्घायुः परमां गतिम् ॥२१४ इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्त इक्ष्वाकुवंशानुकीर्तनं नामाष्टाशीतितमोऽध्यायः ॥८८॥ ।।२१५ सौ संहिताओं का विधिवत् अध्ययन किया था, परम बुद्धिमान् यज्ञावल्क्य ने इन्हों से योग की साङ्गोपाङ्ग शिक्षा प्राप्ति की थी उनके पुत्र परम विद्वान् पुष्य हुए। पुण्य के पुत्र ध्रुवसन्धि नाम से विख्यात हुए, उनके पुत्र सुदर्शन हुये, सुदर्शन से अग्निवर्ण की उत्पत्ति हुई | अग्नि वर्ण के पुत्र शीघ्र नाम से विख्यान हुए, शीघ्रक के पुत्र मनु कहे जाते हैं । मनु योग मार्ग का अवलम्च करके कलाप नामक ग्राम में निवास करते थे, परम ऐश्वर्य- शाली ये मनु उन्नीसवें युग मे क्षत्रिय धर्म के पुनः प्रवर्तक रूप में प्रसिद्ध हुए |२०८-२१०१ मनु के पुत्र प्रसुश्रुत थे । उनके पुत्र सुसंधि हुए । सुसंधि के मर्ष नामक पुत्र हुए, जिनका दूसरा नाम सहस्वान भी था | सहस्वान के पुत्र राजा विश्रुतवान् के नाम से प्रसिद्ध हुए | उन राजा विश्रुतवान् के पुत्र राजा वृहद्वल हुए । इक्ष्वाकु के वंश मे उत्पन्न होनेवाले प्रायः यही राजागण स्मरण किये जाते हैं, जो इस वंश के प्रमुख राजा थे, उनका वर्णन प्रधान रूप से कर दिया गया है | अदिति के पुत्र विवस्वान् की इस सृष्टि विवरण का जो भली भांति पाठ करता है, वह सन्तति वाला होता है तथा विवस्वान्ं के पुत्र मनु का सान्निध्य प्राप्त करता है । प्रजाओं को पुष्टि देनेवाले श्राद्धों में पूजनीय पितरगण एवं देवगण का वह वृत्तान्त जो पढता है वह पाप विहीन, रजोगुण रहित, अविनाशशील एव दीर्घायु वाला होता है । यदि अपुत्री है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है, दीर्घायु मिलती है, और अन्त मे परम गति प्राप्ति होती है |२११-२१५ श्री वायुमहापुराण में इक्ष्वाकुवंशानुकीर्तन नामक अट्ठासोर्चा अध्याय समाप्त ॥८८॥ + नास्त्यर्धमिदं क. ग. घ. . पुस्तकेषु |