पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८२०

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- अष्टाशीतितमोऽध्यायः ॥१६७ ॥१६८ ॥१६६ ॥२०० एवमेव महाबाहुरिक्ष्वाकुकुलनन्दनः । रावणं सगणं हत्वा दिवमाचक्रमे विभुः श्रीरामस्याऽऽत्मजो जज्ञे कुश इत्यभिधीयते । लवश्वान्यो महावीर्यस्तयोर्देशौ निबोधत कुशस्य कोशला राज्यं पुरी वाऽपि कुशस्थली | रम्या निवेशिता तेन विन्ध्यपर्वतसानुषु उत्तराकोशले राज्यं लवस्य च महात्मनः । श्रावस्ती लोकविख्याता कुशवंशं निबोधत* कुशस्य पुत्रो धर्मात्मा ह्यतिथिः सुप्रियातिथिः । अतिथेरपि विख्यातो निषधो नाम पार्थिवः ॥२०१ निषधस्य नलः पुत्रो नभः पुत्रो नलस्य तु । नभसः पुण्डरीकस्तु क्षेमधन्वा ततः स्मृतः क्षेमधन्वसुतो राजा देवानीक: प्रतापवान् । आसीदहीनगुर्नाम देवानीकात्मजः प्रभुः अहोनगोस्तु दायादः पारिपात्रो महायशाः । दलस्तस्याऽऽत्मजश्चापि तस्माज्जज्ञे बलो नृपः औको नाम स धर्मात्मा बलपुत्रो बभूव ह | वज्रनाभसुतस्तस्य शङ्खनस्तस्य चाऽऽत्मजः शङ्खनस्य सुतो विद्वान्ध्युषिताश्व इति श्रुतः । ध्युषिताश्वसुतश्चापि राजा विश्वसहः किल हिरण्यनाभकौशल्यो वशिष्ठस्तत्सुतोऽभवत् । पौत्रस्य जैमिनेः शिष्यः स्मृतः सर्वेषु शर्मसु ॥२०२ ॥२०३ ॥२०४ ॥२०५ ।२०६ ॥२०७ कुल को आनन्दित करनेवाले राम परिवार समेत रावण का विनाश कर इसी प्रकार स्वर्ग को चले गये ।१६४-१६७। श्रीराम के पुत्र जो उत्पन्न हुए ने कुश नाम से विख्यात हुए, लव नामक महा बलवान् एक और था, उन दोनों के देशों को सुनिये । कुश का राज्य कोशला नाम से विख्यात था, उसकी राजधानी कुषास्थली नामक पुरी थी, कुश ने विन्ध्याचल के मनोहर पर्वत शिखर पर उसकी स्थापना की थी। महाबलवान् लव का राज्य उत्तर कोशला के नाम से विख्यात था। उसकी परम विख्यात श्रावस्ती पुरी राजधानी थी । कुश के वंश को सुनिये ।१६८-२००। कुश के पुत्र परम धर्मात्मा अतिथि थे, वे अतिथियों का विशेष सम्मान करते थे । अतिथि के पुत्र परम विख्यात राजा निषध हुए | निषध के पुत्र नल और नल के पुत्र नभ हुए । नभ के पुत्र पुण्डरीक हुए, पुण्डरीक के बाद उनके पुत्र क्षेमधन्वा का स्मरण किया जाता है । क्षेमधन्वा के पुत्र परम बलवान् राजा देवानीक हुए, देवानीक के पुत्र परम प्रभावशाली राजा अहोनगु हुए । अहोनगु के उत्तराधिकारी उनके पुत्र महान् यशस्वी राजा पारिपात्र हुए, उनके पुत्र दल और दल के पुत्र राजा बल उत्पन्न हुए। बल के पुत्र परम धर्मात्मा राजा ओक हुए, उन ओक के पुत्र वज्रनाभ हुए जिनके पुत्र शङ्खन हुए। शङ्खन के परम विद्वान घ्युपिताश्व नामक पुत्र सुने जाते हैं । ऐसी प्रसिद्धि है कि राजा ध्युपिताश्व के पुत्र राजा विश्वसह हुए। राजा राजा विश्वसह के पुत्र हिरण्य नाभ कौशल्य के नाम से विख्यात हुए । उनके पुत्र वशिष्ठ हुए | वे जैमिनि के पौत्र के शिष्य रूप में प्रसिद्धि हैं, सभी मांगलिक कार्यो में उनकी सिद्धहस्तता प्रसिद्ध थी ।२०१-२०७। इन्होंने पाँच

  • कुशस्य कोशलाराज्यं लवस्य च महात्मन इत्यर्थं घ. पुस्तके |