पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८१९

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बायुपुराणम् ॥१८७ ॥१८८ ॥१८६ ॥१६० अङ्गदश्चन्द्रकेतुश्च लक्ष्यणस्याऽऽत्मजावुभौ । हिमवत्पर्वताभ्यासे स्फीतौ जनपदौ तयोः अङ्गदस्यङ्गदीया तु देशे कारपथे पुरी । चन्द्रकेतोस्तु मल्लस्य चन्द्रवक्त्रा पुरी शुभा भरतस्याऽऽत्मजौ वीरौ तक्षः पुष्कर एव च । गान्धारविषये सिद्धे तयोः पुर्यो महात्मनोः तक्षस्य दिक्षु विख्याता रम्या तक्षशिला पुरी | पुष्करस्यापि वीरस्य विख्याता पुष्करावती गाथां चैवात्र गायन्ति ये पुराणविदो जनाः । रामे निवद्ध स्तत्त्वार्थी माहात्म्यात्तस्य धीमतः ॥१६१ श्यामो युवा लोहिताक्षो दीप्तास्यो मितभाषितः । आजानुबाहुः सुमुखः सिंहस्कन्धो महाभुजः ॥१६२ दश वर्षसहस्राणि रामो राज्यमकारयत् | ऋक्सामयजुषां घोषो ज्याघोषश्च महास्वनः अविच्छिन्नोऽभवद्राष्ट्रे दीयतां भुज्यतामिति । जनस्थाने वसन्कार्यं त्रिदशानां चकार सः तमागस्कारिणं पूर्वं पौलस्त्यं मनुजर्षभः | सीतायाः पदन्विच्छन्निजधान महायशाः सत्त्ववान्मगुणसंपन्नो दीप्यमानः स्वतेजसा । अति सूर्यं च वह्न च रापो दाशरथिर्वभौ ॥१६३ ॥१६४ ॥१६५ ॥१६६ ७६८ था । लक्ष्मण के अङ्गद और चन्द्रकेतु नामक दो पुत्र थे, उन दोनों के राज्य हिमवान् पर्वत के सीमावर्ती प्रान्तों में विस्तृत थे |१८४-१८७। बड़े पुत्र अङ्गद की राजधानी कारपथ देश में अंगदोया नाम से विख्यात पुरी थी । मल्ल (बलवान्) चन्द्रकेतु की चन्द्रवक्त्रा नामक परम शोभायमान पुरी थी । भरत के पुत्र तक्ष और पुष्कर दोनों बड़े वीर थे । उन दोनों महानू वलशालियो की राजधानी गान्वार नामक सिद्ध देश मे थी। तक्ष की परम विख्यात परम रमणीय तक्षशिला नामक पुरी थी | वीरवर पुष्कर को भी पुष्करावती नाम से विख्यात पुरी राजधानी थी । जो पुराणो के जाननेवाले लोग है, वे परम बुद्धिमान् राम के विषय मे उनके माहात्म्य को प्रकट करनेवाली तत्त्वपूर्ण यशोगाथाएँ गाते हैं |१८८५-१६११ वे ऐसा कहते हैं कि राम श्यामलवर्ण के, लाल नेत्रोंव.ले, तेज से देदीप्यमान मुखमण्डलवाले एवं मितभाषी युवा थे । उनका मुख परम सुन्दर था, उनकी दोनों बाहु घुटनों को छूनेवाली थी सिंह के समान उनका विशाल कन्वा था, उनके भुजदण्ड विशाल थे | राम ने दस सहस्र वर्षों तक राज्य किया था। उनके राज्य में चारो ओर ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद की सुन्दर मनोहारिणी ध्वनि सुनाई पड़ती थी । उनके धनुष की प्रत्यंचा की ध्वनि परम कठोर थी ।१६२-१९३: उनके राष्ट्र में किसी को भी किसी प्रकार का कष्ट नही था, लोगों में खूब दान करो, खूब खाओ, पीओ, की वूममची थी । उस राम ने जन स्थान मे निवास कर देवताओं का एक परम आवश्यक कार्य सम्पन्न किया था । उन मनुज शिरोमणि महान् यशस्वी राम ने पुलस्त्य मुनि के वंश में उत्पन्न होनेवाले, पापात्मा रावण का संहार सीता को खोजते समय किया था । वे दशरथ पुत्र राम परम वलशाली, सर्वगुण सम्पन्न, एवं अपने अनुपम तेज से देदीप्यमान थे | सूर्य एवं अ'िन को भी उन्होंने अपने तेज से अतिक्रान्त कर दिया था | परम प्रभावशाली महाबाहु इक्ष्वाकु