पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८१८

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अष्टाशीतितमोऽध्याय ॥१७८ ॥१७६ अश्मकस्योरकामस्तु मूलकस्तत्सुतोभवत् । अत्राप्युदाहरन्तीमं मूलकं वै नृपं प्रति स हि रामभयाद्राजा स्तीभिः परिवृतोऽवसत् । विवस्त्रस्त्राणमिच्छन्वै नारीकवचमीश्वरः मूलकस्यापि धर्मात्मा राजा शतरथः स्मृतः । तस्माच्छतरथाज्जज्ञे राजा चैडिविडो बली असीत्त्वंडिविडः श्रीमान्कृतशर्मा प्रतापवान् | पुत्रो विश्वमहत्तस्य पुत्रिकस्य व्यजायत ॥१८० ॥१८१ दिलीपस्तस्य पुत्रोऽभूत्खट्वाङ्गद इति श्रुतिः । येन स्वर्गादिहाऽऽगम्य मूहूर्त प्राप्य जीवितम् ॥ त्रयोऽभिसंहिता लोका बुध्धा सत्येन चैव हि ॥१८२ दीर्घबाहुः सुतस्तस्य रघुस्तमादजायत । अजः पुत्रो रघोश्चापि तस्माज्जज्ञे स वीर्यवान् ॥ राजा दशरथो नाम इक्ष्वाकुकुलनन्दनः रामो दाशरथिर्वीरो धर्मज्ञो लोकविश्रुतः । भरतो लक्ष्मणश्चैव शत्रुध्नश्च महाबलः माधवं लवणं हत्वा गत्वा मधुवनं च तत् । शत्रुघ्नेन पुरी तत्र मथुरा संनिवेशिता सुबाहुः शूरसेनश्च शत्रुघ्नसहितावुभौ । पालयामासतुः सुतौ वैदेह्यौ मथुरां पुरीम् ७६७ ॥१८३ ॥१८४. ॥१८५ ॥१८६ कल्माषपाद के क्षेत्र में ( स्त्री में) इक्ष्वाकु के वंश की वृद्धि के लिए अश्मक नामक पुत्र को उत्पन्न किया | अश्मक का पुत्र उरकाम हुआ, उसका पुत्र मूलक था । उस राजा मूलक के विषय में आज भी लोग यह कहते हैं कि वह राजा मूलक राम ( परशुराम ) के भय से स्त्रियों के बीच में निवास करता था, समर्थ होते हुये भी वह वस्त्र विहीन होकर अपनी रक्षा के लिये स्त्रियों को कवच बनाये हुए था । अथवा पुरुषों का वेश छोड़कर स्त्रियों का वेश धारण किये हुए था ।१७७-१७६। उस राजा मूलक के पुत्र परम घर्मात्मा राजा शतरथ कहे जाते है | उस राजा शतरथ से परम बलवान् राजा ऐडिविड उत्पन्न हुए। वे राजा ऐडिविड परम कान्तिशाली थे । उनके पुत्र प्रतापशाली कृतशर्मा हुए, कृतशर्मा के विश्वमहत् नामक पुत्र उत्पन्न हुए।१८०-१८१। उनके पुत्र दिलीप हुए, जो खवगद नाम से भी प्रसिद्ध थे । वे राजा दिलीप स्वर्गलोक से पृथ्वी लोक पर आकर दो घड़ी तक जीवित रहे । अपने सत्य, बुद्धि एवं बल से उन्होंने तीनों लोकों को पराजित कर दिया था। उन राजा खट्वांगद के पुत्र दीर्घवाहु हुए, उनसे राजा रघु हुए। रघु के परम बलवान् अज उत्पन्न हुए। उन्हीं अज से इक्ष्वाकु को आनन्दित करनेवाले परम वलशाली राजा दशरथ हुए |१८२-१८३१ दशरथ के पुत्र रामचन्द्र परम धर्मज्ञ थे, समस्त लोक में उनकी धर्मज्ञता विख्यात थी। राम के अतिरिक्त भरत, लक्ष्मण और महावलवान् शत्रुघ्न नामक उनके तीन पुत्र और थे । मधु के पुत्र लवणासुर का संहार कर, और मधुवन में प्रवेशकर शत्रुघ्न ने वही पर मथुरा नामक पुरी की प्रतिष्ठापना की थी। विदेह की राजकुमारी से उत्पन्न होनेवाले सुबाहु और शूरसेन नामक दोनो पुत्रों ने अपने पिता शत्रुघ्न के साथ मथुरा पुरी का शासन एवं वहाँ की प्रजाओं का पालन पोषण किया कुल