पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८१७

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७६६ वायुपुराणम् येन गङ्गा सरिच्छ्रे ष्ठा विमानैरुपशोभिता । ईजानेन समुद्राद्वै दुहितृत्वेन कल्पिता ॥ अत्राप्युदाहरन्तीमं श्लोकं पौराणिका जनाः भगीरथस्तु तां गङ्गामानयामास कर्मभिः | तस्माद्भागीरथी गङ्गा कथ्यते वंशवित्तमैः भगीरथसुतश्चापि श्रुतो नाम बभूव है । नाभागस्तस्य दायादो नित्यं धर्मपरायणः अम्बरीषः सुतस्तस्य सिन्धुद्वीपस्ततोऽभवत् । एवं वंशपुराणज्ञा गायन्तीति परिश्रुतम् नाभागेरम्बरोषस्य भुजाभ्यां परिपालिता । बभूव वसुधाऽत्यर्थं तापत्रयविवर्जिता आयुतायुः सुतस्तस्य सिन्धुद्वोपस्य वीर्यवान् । आयुतायोस्तु दायाद ऋतुपर्णो महायशाः दिग्याक्षहृदयज्ञोऽसौ राजा नलसखो बली | नलौ द्वाविति विख्यातौ पुराणेषु दृढव्रतौ वीरसेनात्मणश्चैव यश्चेक्ष्वाकुकुलोद्वहः | ऋतुपर्णस्य पुत्रोऽभूत्सर्वकामो जनेश्वरः सुधासस्तस्य तनयो राजा हंसमुखोऽभवत् । सुदासस्य सुतः प्रोक्तः सौदासो नाम पार्थिवः त्यातः कल्माषपादो वै नाम्ना मित्रसहश्च सः | वसिष्ठस्तु महातेजाः क्षेत्रे कल्माषपादके ॥ अश्मकं जनयामास इक्ष्वाकुकुलवृद्धये ॥१६८ ॥१६६ ।।१७० ॥१७१ ॥१७२ ॥१७३ ॥१७४ ॥१७५ ॥१७६ ॥१७७ सरिताओं में श्रेष्ठ गंगा को पुत्री रूप में प्राप्त किया और समुद्र पर्यन्त उसकी पावनी धारा से पृथ्वी को सुशोभित किया । पुराणो के जाननेवाले आज भी इस श्लोक ( यशोगाथा ) का गान करते है कि 'राजा भगीरथ ने अपने कर्मों द्वारा गंगा जी को पृथ्वी पर उतारा था', राजवंशों के वृत्तान्त को जाननेवाले अर्थात् ऐतिहासिक लोग इसीलिये गंगा को भागीरथी कहते हैं । उस राजा भगीरथ का पुत्र श्रुत नाम से विख्यात हुआ उसका उत्तरा घिकारी नाभाग हुआ. जो सर्वदा अपने धर्म में तत्पर रहने वाला था ।१६६-१७०१ नाभाग का पुत्र अम्बरीष था, और उसका पुत्र राजा सिन्धुद्वीप हुआ । पुरानी कथाओ के जाननेवाले लोग इस वंश का इतिहास इसी प्रकार सुनाते हैं - ऐप हमने भी सुना है । ऐसी प्रसिद्धि है कि राजा नाभाग के पुत्र अम्बरीष की भुजाओं से पाली गई पृथ्वी तीनों नापों से सर्वदा के लिये विहीन गई थी, अर्थात् उसके समय में प्रजाओं को किसी प्रकार का कष्ट नही था । अम्बरीष के पुत्र सिन्धुद्वीप का पुत्र आयुतायु हुआ, वह भी परम बलशाली राजा था | उस आयुतायु का उत्तराधिकारी महान् यशस्वी राजा ऋतुपर्ण हुआ |१७१-१७३। यह ऋतुपर्ण राजा नल का परम सुहृद एवं वलवान् राजा था, दिव्य अक्ष विद्या मे वह परम निपुण था । पुराणों में दो नल विख्यात है, वे दोनो ही परम साह्सी एवं चीर है, उनमे एक नल राजा वीरसेन के पुत्र थे, दूसरे इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए थे । राजा ऋतुपर्ण के पुत्र राजा सर्वकाम थे, उनके पुत्र का नाम सुदास था, इस सुदास का दूसरा नाम हंसमुख भी था । (अथवा उसका मुख हंम की तरह था) उस सुदास के पुत्र राजा सौदास के नाम से कहे जाते है | इनके दूसरे नाम कल्माषपाद तथा मित्रसह भी विख्यात है | १७४-१७६१। महान् तेजस्वी महपि वसिष्ठ ने राजा