पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८१६

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अष्टाशीतितमोऽध्यायः मुनेस्तु वचनं श्रुत्वा केशिनी पुत्रमेककम् । वंशस्य कारणं श्रेष्ठा जग्राह नृपसंसदि षष्टिपुत्रसहस्राणि सुवर्णभगिनी तथा । * महात्मनस्तु जग्राह सुमतिः स्वमतिर्यथा अथ काले गते ज्येष्ठा ज्येष्ठं पुत्रं व्यजायत । असमञ्ज इति ख्यातं काकुत्स्थं सगरात्मजम् सुमतिस्त्वपि जज्ञे वै गर्भ तुम्बं यशस्विनी | षष्टिपुत्रसहस्राणि तुम्बमध्यावनिःसृताः घृतपूर्णेषु कुम्भेषु तान्गर्भान्यवधत्ततः । धात्रीश्चैकैकशः प्रादात्तावतीः पोषणे नृपः ततो नवसु मासेषु समुत्तस्थुर्यथासुखम् | कुमारास्ते महाभागाः सगरनोतिवर्धनाः कालेन महता चैव यौवनं प्रतिपेदिरे । षष्टिपुत्रसहस्त्राणि तेषामश्वानुसारिणाम् स तु ज्येष्ठो नरव्याघ्रः सगरस्याऽऽत्मसंभवः | असमञ्ज इति ख्यातो बहिकेतुर्महाबलः पौराणामहिते युक्तः पित्रा निर्वासितः पुरा | तस्य पुत्रोंऽशुमानाम असमञ्जस्य वीर्यवान् तस्य पुत्रस्तु धर्मात्मा दिलोप इति विश्रुतः । दिलीपात्तु महातेजा वीरो जातो भगीरथः कि इनमें से एक वंश कर्त्ता पुत्र को उत्पन्न करेगी और दूसरी साठ सहस्र पुत्र उत्पन्न करेगी। राज सभा में मुनि के इन दोनों वरदानों में से केशिनी ने वंशकर्त्ता एक पुत्र की प्राप्ति का वरदान मांगा, सुपर्णभगिनी दूसरी रानी सुमति ने अपने मन के अनुकूल महामुनि से साठ सहस्र पुत्रों को प्राप्त करने का वरदान मांगा | तदनुसार समय आने पर वडी रानी केशिनी ने ज्येष्ठ पुत्र असमञ्ज को उत्पन्न किया बाद मे चलकर वह सगर पुत्र राजा असमंज काकुत्स्थ नाम से विख्यात हुआ ।१५७-१६०। यशस्विनी रानी सुमति ने अपने गर्भ से एक तुम्व उत्पन्न किया जिसके बीच से साठ सहस्र पुत्र निकले । उत्पन्न होने के बाद वे गर्भ घृत से भरे हुए पात्रों में रखे गये, राजा मे उन पात्रों को साठ सहस्र धायो को पालने के लिये सौपा । नव महीने बीत जाने पर उन पात्रों से सुखपूर्वक वे साठ सहस्र महाभाग्यशाली राजकुमार बाहर निकले, जिन्हें देखकर राजा सगर को परम सुख प्राप्त हुआ । बहुत दिन व्यतीत हो जाने पर वे सब राजकुमार युवावस्था को प्राप्त हुए । प्रथम अश्वमेध यज्ञ के अश्व के पीछे वे साठ सहस्र पुत्र गये थे ।१६१-१६४। राजा सगर के सब से बड़े औरस पुत्र नर व्याघ्र असमंज महा- बलवान् थे, उनका दूसरा नाम वहिकेतु भी प्रसिद्ध था । पहले वे नगर निवासियों के अहितकर कार्यों में लगे रहते थे, इससे पिता ने उन्हें निर्वासित कर दिया था | असमञ्ज के परम बलवान् अंशुमान नामक पुत्र हुए । अंगुमान् के परम धर्मात्मा दिलीप नाम से विख्यात पुत्र हुए। दिलीप से महान् तेजस्वी भगीरथ नामक वीर पुत्र उत्पन्न हुआ । १६५-१६७। इसी भगीरथ ने अपनी पूजा एवं क्रिया के बल से विमानों से सुगोभित समस्त

७६५ ॥१५८ ॥१५६ ॥१६० ॥१६१ ॥१६२ ॥१६३ ॥१६४ ॥१६५ ॥१६६ ॥१६७ एतदधंस्थाने इदमधं 'महात्मा तु समहतो जग्राह सुमती तथा' इति ख. ग. घ. पुस्तकेपु ।