पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८१३

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७६२ वायुपुराणम् हृतं राज्यं बलीयोभिरेभिः क्षत्रियपुङ्गवैः | हृतराज्यस्तदा बाहुः संन्यस्य नु तदा नृपः ॥ बनं प्रविश्य धर्मात्मा सह पत्न्या तपोऽचरत् कस्यचित्त्वथ कालस्य तोयार्थं प्रस्थितो नृपः । वृद्धात्वाद्दुर्बलत्वाच्च अन्तरा स ममार च पत्नी तु यादवी तस्य सगर्भा पृष्ठतोऽन्वगात् । सपत्न्या तु गरस्तस्यै दत्तो गर्भजिघांसया सा तु भर्तुश्चितां कृत्वा वह्नितं समरोहयत् | और्वस्तां भार्गवो दृष्ट्वा कारुण्याद्विन्यवर्तयत् तस्याश्रमे तु तं गर्भं सागरेण तदा सह । व्याजायत महावाहुं सगरं नाम धार्मिकम् और्वस्तु जातकर्मादीत्कृत्वा तस्य महात्मनः | अध्याप्य वेदशाखाणि ततोऽस्त्रं प्रत्यपादयत् जामदग्न्यात्तदाग्नेयमसुरैरपि दुःसहम् । स तेनास्त्रवलेनैव बलेन च समन्वितः ॥ जघान हैहयान्कुद्धो रुद्रः पशुगणानिव ततः शकान्सयवनान्काम्बोजान्पारदांस्तथा । पह्नवांश्चैव निःशेषान्दतुं व्यवसितो नृपः ते बध्यमाना वीरेण सगरेण महात्मना । वसिष्ठं शरणं सर्वे प्रपन्नाः शरणैषिणः वसिष्ठस्तांस्तथेत्युक्त्वा समयेन महामुनिः । सगरं वारयामास तेषां दत्त्वाऽभयं तदा ॥१२६ ॥ १३० ॥१३१ ॥१३२ ॥१३३ ॥१३४ ॥१३५ ॥१३६ ॥१३७ ॥१३८ मन को चले गये और वहीं तपस्या करना प्रारंभ किया ११२७ १२९। कुछ समय बाद एक दिन राजा जल लेने के लिये गये, और अत्यन्त वृद्ध तथा दुर्बल होने के कारण बीच मार्ग में ही उनकी मृत्यु हो गयी । उनकी यादवी नामक पत्नी, जो उस समय गर्भवती थी, अनुगमन के लिये प्रस्तुत हुई, उसके गर्भ को मारने की नीयत से सपत्नी ने उसे विष दे दिया था । यादवी को पति की चिता बनाकर उसने बैठा दिया और आग भी लगा दी, उसी बीच भार्गव ओवं मुनि वहाँ आये और करुणावश उसे जलने से निवारित किया ।१३०-१३२। उन्ही ओर्व ऋषि के आश्रम मे यादवी ने सपत्नी के दिये गए विप के साथ महावाहू सगर नामक परम धार्मिक पुत्र उत्पन्न किया । मुनिवर ओर्व ने उस महा तेजस्वी सगर का जातकर्मादि संस्कार सम्पन्न किया और वेद शास्त्रों का सम्पूर्ण अध्ययन कराकर अस्त्र विद्या भी दी । उसी समय जमदग्नि के पुत्र भौवं मुनि से सगर ने उस आग्नेयास्त्र को प्राप्त किया, जिसे बड़े बड़े राक्षस भी सहन करने में असमर्थ थे। उसी अस्त्र बल से तथा अपने शारीरिक बल से उस परम प्रतापी राजा सगर ने अत्यन्त क्रुद्ध होकर हैहयों का वध इस प्रकार कर डाला, जैसे रूद्र सृष्टि के अवसान में जीव समूहों का संहार करते है |१३३-१३५। हैहयों को मारने के उपरान्त राजा सगर ने शक, यवन, कम्बोज पारद, एवं पह्नवों को भी निर्जीव कर देने का इरादा किया । महाबलवान् एवं पराक्रमी सगर ने अत्यन्त पीड़ित एवं भयभीत होकर वे सब शरण खोजते हुए जब महर्षि वसिष्ठ के पास पहुँचे तब महामुनि ने वचन देकर उनको अभय दान दिया और राजा सगर को इस संहार कार्य से निवारित किया। राजा सगर ने इधर अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करने का, उधर गुरु के आदेश का विचार