पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८१४

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अष्टाशीतितमोऽध्यायः सगरः स्वां प्रतिज्ञां च गुरोर्वाक्यं निशम्य च । धर्मं जघान तेषां वै वेषान्यत्वं चकार ह अर्धं शकानां शिरसो मुण्डयित्वा व्यसर्जयत् । यवनानां शिरः सर्वं काम्बोजानां तथैव च पारदा मुक्तकेशाश्च पल्हवाः श्मश्रुधारिणः । निःस्वाध्यायवषट्काराः कृतास्तेन महात्मना शका यवनकाम्बोजाः पल्हवाः पारदैः सह । कलिस्पर्शा माहिषिका दावश्चोलाः खसास्तथा सर्वे ते क्षत्रियगणा धर्मस्तेषां निराकृतः । वसिष्ठवचनात्पूर्व सगरेण महात्मना स धर्मविजयी राजा विजित्वेमां वसुंधराम् । अश्वं विचारयामास वाजिशेधाय दीक्षितः तस्य चारयतः सोऽश्वः समुद्रे पूर्वदक्षिणे | वेलासमोपेडपहृतो भूमिं चैव प्रवेशितः स तं देशं सुतैः सर्वैः खानयामास पार्थिवः । आसेदुश्च ततस्तस्मिस्तदन्तस्ते महार्णवे तमादिपुरुषं देवं हरिं कृष्णं प्रजापतिम् । विष्णुं कपिलरूपेण हंसं नारायणं प्रभुम् तस्य चक्षुः समासाद्य तेजस्तत्प्रतिपद्यते । दग्धाः पुत्रास्तदा सर्वे चत्वारस्त्ववशेषिताः बहकेतुः सकेतुश्च तथा बर्मरतश्च वः । शूरः पश्चवनश्चैव तस्य वंशकराः प्रभोः ७६३ ॥१३६ ॥१४० ॥१४१ ॥१४२ ॥१४३ ॥ १४४ ॥१४५ ॥१४६ ॥१४७ ॥१४८ ॥१४९ करके उन सबों के धर्मों को नष्ट कर दिया तथा वेष भूषा आदि भी बदल दी |१३६-१३६ | शूकों का उसने आधा शिर मुण्डित करा कर छोड़ दिया, यवनों के पूरे शिर को मुंडित करा के छोड़ दिया, कम्बोजो को भी पूरा शिर मंडित करा के छोड़ दिया, पारदों के केवल केश छोड़ दिये मूंछ दाढ़ी सब मुण्डित करा दिये, पल्हवों की केवल दाढ़ी रखवा कर छोड़ दिया । उस महान् बलशाली ने इन सत्र को वेदाध्ययन, यज्ञ हवनादि से सर्वथा वंचित कर दिया । ये शक, यवन, काम्बोज, पह्नव, पारद, कलिस्पर्श, माहिपिक, दार्थ, चोल एवं खस जाति वाले सभी पहले क्षत्रिय वर्ण के थे, इनके धर्म को उस महाबलवान् राजा ने वसिष्ठ का वचन मानकर निराकृत कर दिया | १४०-१४३। इस प्रकार उस धर्मविजयी राजा ने सारी पृथ्वी जीतकर अश्वमेध यज्ञ की दीक्षा ग्रहण कर अश्व को भूमण्डल भर घुमाया | घुमाते समय उसका अश्वमेध यज्ञ का वह अश्व पूर्त-दक्षिण समुद्र के तटवर्ती प्रान्त में अपहृत कर लिया गया और पृथ्वी के भीतर छिपा दिया गया ११४९-१४५। तदनन्तर राजा सगर ने अपने सभी पुत्रों से समुद्र के तटवर्ती समस्त प्रान्तों को खनवा डाला, खनते समय उसके पुत्रगण उस महासमुद्र के अन्तिम छोर पर पहुँच गये और वहाँ पर आदि पुरुप, हरि, कृष्ण, प्रजापति, नारायण, प्रभु, हस आदि अनेक नामों एवं रूपो से प्रकाशित होनेवाले भगवान् विष्णुको महर्षि कपिल के वेश ( में उपस्थित देखा ।) चोर जानकर उनके पास, ज्योंही उनकी आँख के सामने पहुँचे त्योही परम तेज को न सहन कर भस्म हो गये, केवल चार पुत्र शेष रह गये |१४६-१४८ उनके नाम वहिकेतु, सुकेतु, धर्मरत और पंचवन थे, उस महान् ऐश्वर्यशाली राजा सगर के वंश को बढ़ाने वाले ये चार पुत्र कहे जाते है । भगवान् नारायण ने फा०-१००