पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८०७

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७८६ वायुपुराणम् तस्य चैत्ररथी भार्या शशबिन्दोः सुताऽभवत् । साध्वी विन्दुमती नाम रूपेणाप्रतिमा भुवि पतिव्रता च ज्येष्ठा च भ्रातृणामयुतस्य सा | तस्यामुत्पादयामास मांधाता त्रीन्सुतान्प्रभुः पुरुकुत्ससम्बरीषं सुचुकुन्दं च विश्रुतम् | अम्बरीषस्य दायादो युवनाश्वोऽपरः स्मृतः हरितो युवनाश्वस्य हारिताः शूरयः स्मृताः । एते ह्मङ्गिरसः पुत्राः क्षात्रोपेता द्विजातयः पुरुकुत्सस्य दायादस्त्रसदस्युर्महायशाः । नर्मदायां समुत्पन्नः संभूतस्तस्य चात्मजः संभूतस्याऽऽत्मजः पुत्रो ह्यनरण्यः प्रतापवान् | रावणो निहतो येन त्रिलोकोविजये पुरा त्रसदधोऽनरण्यश्च हर्षश्वस्तस्य चाऽऽत्मजः । हर्षश्वात्तु दृषद्वत्यां जज्ञे वसुमतो नृपः तस्य पुत्रोऽभवद्राजा त्रिधन्वा नाम धार्मिकः । आसीत्त्रधन्वनश्चापि विद्वांस्त्रय्यारुणः प्रभुः तस्य सत्यव्रतो नाम कुमासेऽभून्महाबलः । तेन भार्या विदर्भस्य हृता हत्वा दिवौकसान् पाणिग्रहणमन्त्रेषु निष्ठां संप्रापितेष्विह | विष्णुवृद्धः सुतस्तस्य विष्णुवृद्धा यतः स्मृताः ॥ एते ह्यङ्गिरस पुत्राः क्षात्त्रोपेताः समाश्रिताः कामाद्वलाच्च मोहाच्च संकर्षणबलेन च । भाविनोऽर्थस्य च बलात्तत्कृतं तेन धीमता ॥७० ॥ ७१ ॥७२ ।७३ ३।७४ ॥७५ ।७६ १।७७ ॥७८ ॥७६ ||८० चंतरथी थी । वह समस्त पृथ्वी मे अपने रूप में अनुपम थी । उस परम पतिव्रता का अन्य नाम विन्दुमतो भी था । अपने दस सहस्र भाइयो मे वह सबसे ज्येष्ठ थी, उसका पतिव्रता धर्म प्रशंसनीय था । ऐश्वर्यशाली मान्धाता ने उससे तीन पुत्र उत्पन्न किये, जिनके नाम पुरुकुन्स, अम्बरीप और मुचुकुन्द सुने जाते है । राजा अम्बरीप का उत्तराधिकारी दूसरा युवनाश्व हुआ, युवनाश्व के पुत्र हरित हुए, हरित के पुत्र शूरि नाम से विख्यात हुए | ये महपि अंगिरा के पुत्र क्षत्रिय धर्म परायण द्विजाति कहे जाते थे, राजा पुरुकुत्स के उत्तराधिकारी महान् यशस्वी त्रसदस्यु हुए, जिनका जन्म नर्मदा मे हुआ था, त्रसदन्यु के पुत्र सम्भूत हुए |७०-७४॥ सम्भूत के पुत्र परम प्रताप शाली अनरण्य हुए | जिन्होंने प्राचीन काल मे त्रिलोको विजय के प्रसङ्ग में रावण का निधन किया था । उन राजा अनरण्य के पुत्र त्रसदश्व हुए, जिनके पुत्र का नाम हर्यश्व था, उन राजा हर्यश्व से दृषद्वती में राजा वसुमत का जन्म हुआ । राजा वसुमत के पुत्र परम धर्मिक राजा त्रिधन्वा उत्पन्न हुए, राजा त्रिषन्वा के पुत्र परम विद्वान् एवं प्रभावशाली राजा त्रय्यारुण हुए १७५-१७। उनके महा बलवान पुत्र सत्यव्रत हुए उन्होने विदर्भ राजा की स्त्री को, विवाह के मंत्रों के उच्चारण करते समय, जब सारी क्रियाएँ समाप्त हो गयी थीं, समस्त देवताओं को पराजित कर, हरण किया था । उस परम बलवान राजा के पुत्र विष्णुवृद्ध हुए, जिनसे उत्पन्न होनेवाले वंश के लोग विष्णुवृद्ध नाम से विख्यात हुए | अगिरा के ये पुत्रगण भी क्षत्रिय मिश्रित द्विजाति वर्ण के हैं ।७८-७६। परम बुद्धिमान सत्यव्रत ने अपनी इच्छा से, बल से, अथवा बलवान भावी (नियति) के वश होकर बलपूर्वक उक्त दुराचरण किया था, उसके इस अधर्माचरण से असन्तुष्ट होकर पिता य्यारुण ने