पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८०६

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अंष्टाशीतितमोऽध्यायः ७६५ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ तस्य वुत्रास्त्रयः शिष्टा दृढाश्वो ज्येष्ठ उच्चते | भद्राश्वः कपिलाश्वश्व कनीयांसौ तु तौ स्मृतौ ॥६१ धौन्धुमारिदृढाश्वस्तु हर्यश्वस्तस्य चाऽऽत्मजः । हर्यश्वस्य निकुम्भोऽभूत्क्षत्रधर्मरतः सदा संहताश्वो निकुम्भस्य श्रुतो रणविशारदः । कृशाश्वश्चाक्षयाश्वश्च संहताश्वसुतावुभौ तस्य पत्नी हैमवती सतां मतिदृषद्वती। विख्याता त्रिषु लोकेषु पुत्रस्तस्याः प्रसेनजित् युवनाश्वः सुतस्तस्य त्रिषु लोकेष्वतिद्युतिः । अत्यन्तधार्मिको गौरी तस्य पत्नी पतिव्रता अभिशस्ता तु सा भर्त्रा नदी सा बाहुदा कृता । तस्यास्तु गौरिकः पुत्रश्चक्रवर्ती बभूव ह मांधाता यौवनाश्वो वै त्रैलोक्यविजयो नृपः । अत्राप्युदाहरन्तीमौ श्लोकौ पौराणिका द्विजाः यावत्सूर्य उदयति यावच्च प्रतितिष्ठति । सर्वं तद्यौवनाश्चस्य मांधातुः क्षेत्रमुच्यते अत्राप्युदाहरन्तीमं श्लोकं वंशविदो जनाः | यौवनाश्वं महात्मानं यज्वानममितौजसम् ॥ मांधाता तु तनुर्विष्णोः पुराणज्ञाः प्रचक्षते ॥६६ ॥६७ ॥६८ ॥६ तीन द्वारा उनके जिन पुत्रों का निधन हुआ था, उन्हें अक्षय स्वर्ग प्रदान किया ।५६-६०। उस राजा कुवलाश्व के जी पुत्र शेष `रह गये थे, उनमें सबसे बड़े का नाम दृढाश्व कहा जाता है, भद्राश्व और कपिलाश्त्र - ये दो छोटे कहे जाते है । धुन्धुमार के ज्येष्ठ पुत्र दृढाश्व का जो पुत्र हुआ उसका नाम हर्यश्व था । हर्यश्व का पुत्र निकुम्भ हुआ, जो सवंदा क्षत्रिय धर्म में निरत रहनेवाला था |६१-६२। निकुम्भ का पुत्र सहताश्व रणभूमि में परम निपुण सुना जाता है। उसके कृशाश्व और अक्षयाश्व नामक दो पुत्र हुए । संहताश्व की एक पत्नी का नाम हेमवती थी, जो सत्पुरुषों से सम्मानीय थी, उसका दूसरा नाम मतिदुषद्वतो था, तीनों लोकों में वह परम विख्यात थी, उसका पुत्र प्रसेनजित हुआ |६३-६४॥ प्रसेनजित का पुत्र युवनाश्व तीनों लोकों में परम कान्तिमान था, उसके विचार परम धार्मिक थे, उसकी पतिव्रता भार्या गौरी थी। पति ने एक बार उसे शाप दे दिया, जिसके फल स्वरूप वह वाहुदा नामक नदी के रूप परिणत हुई | उसका पुत्र गौरिक अपने समय का चक्रवर्ती सम्राट् हुआ । युवनाश्व का पुत्र मान्धाता त्रैलोक्य विजयो राजा था, उसके विषय में पुरानी कथाओं के जाने वाले विप्रगण ये दो श्लोक बतलाते है, जिनका तात्पर्य यह है । 'जहाँ से सूर्य उदित होते हैं और जहाँ पर जाकर अस्त होते हैं, वह सब मान्धाता का क्षेत्र (राज्य) कहा जाता है । इस प्रसंग में राजवंशों के जानने वाले लोग परम तेजस्वी, यज्ञ परायण महात्मा मान्धाता के विषय में यहाँ तक कहते हैं कि 'पुराणज्ञ लोग मान्धाता को भगवान् विष्णु का स्वरूप बतलाते हैं । ६५-६६। उस राजा मान्धाता को स्त्री शशविन्दु की पुत्री फा०-६