पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८०१

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वायुपुराणम् स गतस्तु मृगव्यां वै वचनात्तस्य धीमतः । मृगान्सहस्रशो हत्वा परिश्रान्तश्च वीर्यवान् ॥ भक्षयच्छशकं तत्र विकुक्षिमृगयां गतः ७५० ॥१३' ॥१४ ॥१५ ॥१६ ॥१७ आगते स विकुक्षौ तु समांसे सहसैनिके । वसिष्ठं चोदयामास मांसं प्रोक्षय मन्त्रतः तथेति चोदितो राज्ञा विधिवत्समुपस्थितः । स दृष्ट्वोपहतं मांसं क्रुद्धो राजानमब्रवीत् क्षुद्रेणोपहतं मासं पुत्रेण तव पार्थिव | शशभक्षादभोज्यं वै तव मांसं महाद्युते शशो दुरात्मना पूर्वमरण्ये भक्षितोऽनघ । तेन मांसमिदं दुष्टं पितॄणां नृपसत्तम इक्ष्वाकुस्तु ततः क्रुद्धो विकुक्षिमिदमब्रवीत् । पितृकर्माणि निर्दिष्टो मया त्वं मृगयां गतः ॥ शशं भक्षयसेडरण्ये निर्घृणः पूर्वमद्य नु ॥१८ ॥१६ तस्मात्परित्यजामि त्वां गच्छ त्वं स्वेन कर्मणा । एवमिक्ष्वाकुना त्यक्तो वशिष्ठवचनात्सुतः इक्ष्वाको संस्थिते तस्मिञ्शशास पृथिवीमिमाम् । प्राप्तः परमधर्मात्मा स चायोध्याधिपोऽभवत् ॥२ तदाsकरोत्स राज्यं वै वसिष्ठपरितोदितः । ततस्तेनैनसा पूर्णो राज्यावस्थो महीपतिः ॥२१ धान् होने पर भी बहुत थक से गये । औौर मृगया करते समय उन्होंने थकावट दूर करने के लिये वहीं पर एक खरगोश खा लिया |१२-१३॥ सैनिकों के साथ मांस लेकर जब विकुक्षि राजधानी को वापिस लौटे तव, राजा ने महर्षि वसिष्ठ से "मांस का मंत्रोच्चारण पूर्वक सिंचन संस्कार कर दीजिये' - ऐसा कहा । राजा. के ऐसा कहने पर वसिष्ठ से 'बहुत अच्छा' कहकर विधि पूर्वक सिंचन संस्कार करने के लिये जब वहाँ उपस्थित हुए । तब उस समस्त मांस राशि को अपवित्र देखकर परम शुद्ध होकर राजा से बोले १४-१५ राजन् ! तुम्हारे इस नीच स्वभाव वाले पुत्र विकुक्षि ने यह सव मांस अपवित्र कर दिया है।, इसने पूर्व में ही खरगोश का मांस खा लिया है, अतः उसी के कारण यह सारा मांस अखाद्य हो. गया है । हे निष्पाप ! इस तुम्हारे दुरात्मा पुत्र ने वन में श्राद्ध के पूर्व ही एक खरगोश खा लिया है, हे मृपतिवर ! इसी कारण से यह सारा मांस दूषित हो गया, अव यह पितरों के योग्य नहीं रह गया है |१६-१७॥ वसिष्ठ की ऐसी बातें सुनकर राजा इक्ष्वाकु परम कुद्ध हुए और बिकुक्षि से बोले – 'मैंने तुम्हें पितृकर्म के योग्य मांस लाने के लिए आज्ञा की थी, और उसी के लिये तुम शिकार करने गये भो थे, किन्तु वहाँ पर तुमने कुछ भी उचित अनुचित का विचार न कर श्राद्ध के पहिले ही निर्ममतापूर्वक एक खरगेश खा लिया ११८॥ इस गुरु अपराध के कारण तुम्हें में त्याग कर रहा हूँ, अब तुम यहाँ बाहर जहाँ मन कहे चले जाओ और अपने इस नीच कर्म का फल भोगो ।' वसिष्ठ के कहने पर इस प्रकार राजा इक्ष्वाकु ने अपने पुत्र विकुक्षि को त्याग दिया | उस राजा इक्ष्वाकु के परलोक गमन के अनन्तर परम धर्मात्मा विकुक्षि ने महपि वसिष्ठ के बहुत कहने सुनने पर अयोध्या का राज्य भाग अपने ऊपर ले लिया और समस्त पृथ्वी मण्डल का शासन किया ।