पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८०२

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अष्टाशीतितमोऽध्यायः कालेन गतवांस्तत्र स च न्यूनतरां गतिम् । ज्ञात्वैवमेतदाख्यानं नाविधिर्भक्षयेत्तु व मांस भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् । एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः शशादस्य तु दायादः ककुस्त्थो नाम वीर्यवान् । इन्द्रस्य वृषभूतस्य ककुत्स्थो जायते पुरा पूर्वमाडीवके युद्धे ककुत्स्थस्तेन स स्मृतः । अनेनास्तु ककुत्स्थस्य पृथुरानेनसः स्मृतः वृषदश्वः पृथोः पुत्रस्तस्मादन्ध्रस्तु वीर्यवान् | आंध्रस्तु यवनाश्वस्तु श्रावस्तस्तस्य चाऽऽत्मजः जज्ञे श्रावस्तको राजा श्रावस्ती येन निर्मिता | श्रावस्तस्य तु दायादो बृहदश्वो महायशाः बृहदश्वसुतश्चापि कुवलाश्च इति श्रुतिः । यः स धुन्धुवधाद्वाजा धुन्धुमारत्वमागतः ऋषय ऊचुः धुन्धेर्वाधं महाप्राज्ञ श्रोतुमिच्छामि विस्तरात् । यदर्थं कुवलाश्वः स धुन्धुमारत्वमागतः सूत उवाच बृहदश्वस्य पुत्राणां सहस्राण्येकविंशतिः । सर्वे विद्यासु निष्णाता बलवन्तो दुरासदाः ● ७८१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ ।।२७ ॥२८ ॥२ ॥३० किन्तु राज्य भार ले लेने पर वह राजा विकुक्षि अपने उस पूर्व पाप के कारण उत्तरोत्तर गिरता गया उसको महिमा उत्तरोत्तर क्षीण होती गई । इस आख्यान को जानकर लोगों को चाहिये कि विना विधान के मांस को न खायें |१९-२२। बुद्धिमान् लोग मांस के विषय में यह कहा करते है कि "मैं इस लोक में जिसके मांस का भक्षण कर रहा हूँ, वह परलोक में मेरे मांस का भक्षण करेगा – यही मांस भक्षण का नियम है।" शश भक्षण करनेवाले राजा विकुक्षि का उत्तराधिकारी परम बलवान् राजा ककुत्स्थ हुआ । प्राचीनकाल में इन्द्र के बैल का स्वरूप धारण करने पर यह राजा उनके ककुद ( डील ) पर सवार हुआ था । यह प्रसंग पूर्वकाल में होनेवाले आडीवक नामक युद्ध में घटित हुआ था, इसीलिये इसका नाम ककुत्स्थ पड़ा । ककुत्स्थ के पुत्र अनेना हुए, अनेना के पुत्र राजा पृथु हुए, पृथु के पुत्र वृषदश्व हुए, उनके परम बलशाली अन्ध्र नामक पुत्र हुआ | अन्ध्र के यवनाश्व नामक पुत्र हुआ, जिसके पुत्र का नाम श्रावस्त हुआ |२३-२६। उसी राजा श्रावस्त ने श्रावस्ती नामक पुरी का निर्माण किया था। राजा श्रावस्त के पुत्र महान् यशस्वी राजा वृहदश्व हुए | बृहदश्व के पुत्र का नाम कुवलाइव सुना जाता है। यही राजा कुवलाश्व धुन्धु के मारने के कारण धुन्धुमार नाम से विख्यात हुए |२७-२८॥ ऋषियों ने कहा- हे परम बुद्धिमान् सूत जी ! धुन्धु के वध का वृत्तान्त विस्तारपूर्वक सुनना चाहते हैं, जिस कारणवश राजा कुवलाश्व को घुन्धुमार की उपाधि मिली |२९| सूत बोले – ऋषिवृन्द ! राजा वृहदश्व के पुत्रों की संख्या इक्कीस सहस्र थी, वे सब के सब