पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/८००

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अष्टाशीतितमोऽध्यायः प्रयता इति विख्याता दिक्षु सर्वासु धार्मिकाः । धृष्टस्य धाटकं क्षत्रं रणधृष्टं बभूव ह त्रिसाहस्रं तु सगणं क्षत्रियाणां महात्मनाम् । नभगस्य च दायादो नाभागो नाम वीर्यवान् अम्बरीषस्तु नाभागिवरूपस्तस्य चाऽऽत्मजः | पृषदश्वो विरूपस्य तस्य पुत्रो रथीतरः एते क्षत्रप्रसूता वै पुनश्चाङ्गिरसः स्मृताः । रथीतराणां प्रवराः क्षात्रोपेता द्विजातयः क्षुवतस्तु मनोः पूर्वमिक्ष्वाकुरभिनिःसृतः | तस्य पुत्रशतं त्वासीदिक्ष्वाकोर्भूरिदक्षिणम् तेषां ज्येष्ठो विकुक्षिश्च नेमिर्दण्डश्च ते त्रयः । शकुनिप्रमुखास्तस्य पुत्रा पश्चशतं तु ते उत्तरापथदेशस्य रक्षितारो महीक्षितः । चत्वारिंशत्तथाऽष्टौ च दक्षिणायां च ते दिशि विशतिप्रमुखास्ते तु दक्षिणापथरक्षिणः । इक्ष्वाकुस्तु विकुक्षि वै अष्टाकायामथाऽऽदिशत् राजोवाच मांसमानय श्राद्धेयं मृगान्हत्वा महाबल | श्राद्धमद्य नु कर्तव्यमष्टकायां न संशयः ७७६ ॥४ ॥५ ॥६ ॥७ ॥८ ॥ ॥१० ॥११ ॥१२ के वे बंशज क्षत्रिय गण सभी दिशाओं में धार्मिक विचारोंवाले तथा इन्द्रियों को वश में रखनेवाले विख्यात थे । इसी वंश में उत्पन्न होनेवाले घुष्ट के घाटक, क्षत्र, रणधृष्ट नामक पुत्र हुए |३-४ | जो परम बलवान् तीन सहस्र क्षत्रियों के समूह में प्रमुख थे । दूसरे उसी वंश में उत्पन्न होनेवाले नभग के उत्तराधिकारी परम बलवान् नाभांग नाम से प्रसिद्ध हुए | नाभाग के पुत्र अम्बरीष हुए, उन अम्बरीष के पुत्र विरूप हुए । विरूप के पृषदश्व हुए, जिनके का नाम रथीतर हुआ । ये उपर्युक्त राजा गण क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हुए और अंगिरा के गोत्रज रूप में विख्यात हुए । रथोतर के वंश में उत्पन्न होनेवालों के प्रवर क्षत्रिय एवं ब्राह्मण दोनों के हैं। प्राचीनकाल में मनु के छोकते समय इक्ष्वाकु नामक पुत्र निकल पड़े थे । वे परम दानशील थे, उनके एक सौ पुत्र हुए |५- ८ उन सभी पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ विकुक्षि नाम से विख्यात थे, उनके अतिरिक्त नेमि और दण्ड —– को मिलाकर तीन पुत्र विख्यात थे, विकुक्षि के शकुनि प्रभृति पाँच सौ पुत्र । वे सभी उत्तराखण्ड के देशों के स्वामी हुए । अड़तालीस दक्षिण में हुए। जिनमें बीस प्रमुख थे, वे दक्षिण दिशा पथ के समस्त प्रदेशों की रक्षा में तत्पर रहनेवाले थे। एक बार अष्टकातिथि के अवसर पर इक्ष्वाकु ने विकुक्षि को आदेश दिया ।९-११। राजा ने कहा- हे महावलवान् ! मृगों को मारकर श्राद्ध करने योग्य मांस लाओ | आज अष्टका तिथि है, आज श्राद्ध करने का मेरा निश्चय है | परम बुद्धिमान राजा इक्ष्वाकु को आजा से विकुक्षि मृगों का वध करने के लिये वन को गये। वहाँ सहस्रों भृगों का वध करने के कारण विकुक्षि परम बल-