पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७९९

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वायुपुराणम् कुशत्यनुत्तरः सत्यं सप्तसत्त्वस्वरं तु यः । * चित्रशाखासुतं तस्य धार्मिकस्य महात्मनः इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्तं गीतालंकार निर्देशो नाम सप्ताशीतितमोऽध्यायः ॥१७॥ अथाष्टाशीतितमोऽध्यायः वैवस्वतमनुवंशवर्णनम् सूत उवाच ककुद्मिनस्तु तं लोकं रैवतस्य गतस्य ह | हता पुण्यजनैः सर्वा राक्षसँः सा कुशस्थली तद्वै भ्रातृशतं तस्य धार्मिकस्य महात्मनः । निवध्यमाना रक्षोभिद्रशः संप्राद्रवन्भयात् तेषां तु ते भयाक्रान्ताः क्षत्रियास्तत्र तत्र हि । अन्ववायस्तु सुमहान्महांस्तत्र द्विजोत्तमाः ७७८ ॥४६ ॥१ ॥२ ॥३ हैं | जो सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति इम सात मूल स्वरों का भली भाँति अध्ययन करता है, उस धार्मिक महात्मा को चित्रशाखा सुत के समान कीर्ति फैलती है ।४३-४६। श्री वायुमहापुराण मे गोतालकार निर्देश नामक सत्तासीवां अध्याय समाप्त ||८७|| अध्याय ८८ वैवस्वत मनु के वंश का वर्णन सूत चोले--ऋषिवृन्द ! उपर्युक्त महाराज रेवत के, जिनका दूसरा नाम ककुयो भी था, मेरु शिखर पर चले जाने के उपरान्त यक्षों और राक्षसो ने मिलकर सारी कुशस्थली को विध्वस्त कर दिया। परम धार्मिक एवं महात्मा उस राजा ककुद्मी के अन्य सौ भाई लोग उन राक्षसों से अतिशय पीडित एवं भयभीत होकर इधर उधर भाग गये |१-२॥ और इस प्रकार उन राक्षसों से भयभीत क्षत्रियों के समूह इधर उधर तितर- वितर हो गये । वहाँ पर भी कुछ वंशज गये जहाँ महान् प्रतापी राजा स्वयं निवास करता था । उस राजा

  • इदमधं नास्ति क. पुस्तके | अस्यार्धस्य न पूर्वापरसंगतिः ।