पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७९०

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षडशीतितमोऽध्यायः रेमे रामश्च धर्मात्मा रेवत्या सहितः किल । तां कथामृषयः श्रुत्वा पप्रच्छुस्तदनन्तरम् ऋषय ऊचु: कथं बहुयुगे काले व्यतीते सूतनन्दन । न जरां रेवती प्राप्ता पलितं च कुतः प्रभो मेरुं गतस्य वा तस्य शर्यातेः संततिः कथम् | स्थिता पृथिव्यामद्यापि श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः कियन्तो वा सुरगणा गन्धर्वास्तत्र कीदृशाः । यच्छु त्वा रेवतः कालान्सुहुर्तमिव मन्यते १ 7 सूत उवाच न जरा क्षुत्पिपासा वा न च मृत्युभयं ततः । न च रोगः प्रभवति ब्रह्मलोकगतस्य हि गान्धर्वं प्रति यच्चापि पृष्टस्तु मुनिसत्तमाः । ततोऽहं संप्रवक्ष्यामि याथातथ्येन सुव्रताः सूत उवाच ॥३६ सप्त स्वरास्त्रयो ग्रामा मुर्छनास्त्वेकविंशतिः । तालाकोनपञ्चाशदित्येतत्स्वरमण्डलम् षड्जर्षभौ च गान्धारो मध्यमः पञ्चमस्तथा । धैवतश्चापि विज्ञेयस्तथा चापि निषादवान् ॥३७ ७६६ ॥३० . ॥३१ ॥३२ ॥३४ ॥३५ सपस्या में प्रवृत्त हुए | यह सर्वप्रसिद्ध बात है कि वलराम जी ने रेवती के साथ दाम्पत्य सुख का अनुभव किया । (सूत से) ऐसी कथा सुनने के उपरान्त ऋषियों ने पूछा | २८-३० ऋषियों ने पूछा- सूतनन्दन ! यह कैसे सम्भव हुआ कि अनेक युगों के बीत जाने पर भी रेवती में वृद्धत्व का समागम नही हुआ और उसके अंगों में पलित का भी आभास नहीं हुआ और मेरु पर्वत पर तपस्यार्थ चले जाने पर राजा शर्याति को सन्तति प्राप्ति किस प्रकार हुई, जो आज भी पृथ्वी में उनके नाम से विख्यात है। इसको हम यथार्थतः सुनना चाहते है । ब्रह्मा की उस सभा में कितने देवता निवास करते हैं ? वहाँ के गन्धवं किस प्रकार के हैं, जिनके संगीत को सुनकर राजा रैवत ने इतने समय को दो घड़ी मान लिया ? |३१ - ३३॥ सूत ने कहा - ऋषिवृन्द ! ब्रह्मलोक में जानेवाले प्राणी में न वृद्धता का समावेश होता है, न उसे भूख लगती है, न प्यास लगती है, न मृत्यु हो का भय सताता है, यही नही किसी प्रकार का रोग भी उस प्राणी को नही सताता | हे सद्व्रतपरायण ! मुनिवर्यवृन्द ! उस गान्धर्व विद्या (संगीत शास्त्र) के विषय में आप लोगों ने जो कुछ मुझसे पूछा है, उसे जो कुछ जानता हूँ वतला रहा हूँ |३४-३५१ सूत बोले- उस संगीतशास्त्र में सात स्वर, तीन ग्राम, इक्कीस मुर्छनाएँ, तथा उनचास ताल होते हैं—यही स्वरमण्डल कहा जाता है । षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पञ्चम, धैवत, और निषाद - ये फा -६७