पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७८६

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

पञ्चाशीतितमोऽध्यायः सूत उवाच प्रोवाच वचनं देवी प्रियहेतोः प्रियं प्रिया | समे ममाऽऽश्रमे देव यः पुमान्संप्रवेक्ष्यति ॥ भविष्यति ध्रुवं नारी सा तुल्याप्सरसां शुभा तत्र सर्वाणि भूतानि पिशाचाः पशवश्च ये | स्त्रीभूताः सह रुद्रेण क्रीडन्त्यप्सरसो यथा उमावनं प्रविष्टस्तु स राजा मृगयां गतः । पिशाचैः सह भूतैस्तु रुद्रः स्त्रीभावमास्थिते तत्मात्स राजा सुद्युम्नः स्त्रोभावं लब्धवान्पुनः । महादेवप्रसादाच्च गाणपत्यमवाप्नुयात् इति महापुराणे वायुप्रोक्ते वैवस्वतमनोः सृष्टिकथगं नाम पञ्चाशीतितमोऽध्यायः ॥८५॥ ७६५ ॥२५ ॥२६ ॥२७ ॥२८ सूत ने कहा- प्राचीनकाल की बात है एक बास देवी (पार्वती) ने देव से यह प्रिय निवेदन अपने हित की दृष्टि से किया था कि हे देव ! मेरे इस आश्रम में जो कोई पुरुष प्रवेश करेगा वह निश्चय अप्सराओं के समान सुन्दरी स्त्री के रूप में परिणत हो जायगा। पार्वती के इस वचन के अनुसार उस आश्रम भूत, पिशाच, पशु आदि जितने जीवगण थे सब स्त्री रूप धारण कर इन्द्र के साथ अप्सराओं के समान क्रीडा करने लगे । मृगया खेलते हुए राजा उमा के उस वन में प्रविष्ट हुए। वहीं पिशाचो और भूतो के साथ रुद्र स्त्री रूप में विराजमान थे। इसी कारण वश राजा सुद्युम्न पुनः स्त्री रूप को प्राप्त हुए, और महादेव की कृपा से गणों का आधिपत्य प्राप्त किया |२५-२३ श्री वायुमहापुराण में वैवस्वतमनु की सृष्टि कथन नामक पचासीवां अध्याय समाप्त ||८५||