पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७८७

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७६६ वायुपुराणम् अथ षडशीतितमोऽध्यायः तन्त्र बैवस्वतमन्नुवंशगान्धर्वमूर्च्छनाकथनम् सूत उवाच निसर्गं मनुपुत्राणां विस्तरेण निबोधत | पृषध्रो हिंसयित्वा तु गुरो *र्गावमभक्षयत् शापाच्छूद्रत्वमापन्नश्च्यवनस्य महात्मनः । करुषस्य तु कारूषाः क्षत्रिया युद्धदुर्मदाः सहस्रक्षत्रियगणविक्रान्तः संबभूव ह । नाभागोऽरिष्टपुत्रस्तु विद्वानासी इलन्दनः भलन्दनस्य पुत्रोऽभूत्गांगुर्नाम महाबलः । प्रांशोरेकोऽभवत्पुत्रः प्रजानिरिति विश्रुतः प्रजानेरभवत्पुत्रः खनित्रो नाम वीर्यवान् | तस्य पुत्रोऽभवच्छ्रोमान्क्षुपो नाम महायशाः क्षुपस्य विशः पुत्रस्तु प्रतिमानं बभूव ह । विशपुत्रस्तु कल्याणो विविंशो नाम धार्मिकः विविंशपुत्रो धर्मात्मा खनिनेत्रः प्रतापवान् | करन्धमस्तस्यपुत्रस्त्रेतायुगमुखेऽभवत् ॥१ ॥२ ॥३ ॥४ ॥५ ॥६ अध्याय ८६ 1 वैवस्वत मनु के वंश-प्रसंग में गन्धर्वों की मूर्च्छना का वर्णन, मनु के पुत्रों का सृष्टि - विवरण विस्तार पूर्वक सुनिये | मनु-पुत्र पृषध्र अपने गुरु महात्मा च्यवन की गौ को मार कर खा गये, जिसके कारण शापवश शुद्र वर्ण में प्राप्त हुए । करुष के कारुष नामक पुत्रगण संग्राम में दुर्दमनीय थे । नाभाग अरिष्ट का पुत्र भलन्दन परमविद्वान् और सहस्रों क्षत्रियों के समूहों में एक मात्र बलशाली हुआ |१-३॥ भलन्दन का पुत्र महाबलवान् प्रांशु हुआ, उस प्रांशु को एक पुत्र हुआ जो प्रजानि नाम से विख्यात हुआ |४| प्रजाति का खनित्र नामक वीर्यशालो पुत्र हुआ, उस खनित्र का पुत्र महायशस्वी क्षुप हुआ, जो परम शोभा सम्पन्न था |५| क्षुप के पुत्र विश हुए, जिनके समान कोई नहीं हुआ । विश के पुत्र धार्मिक विचारों वाले, कल्याणकारी विविंश हुए | ६ | विविश के पुत्र प्रतापशाली, धर्मात्मा खनिनेत्र हुए, उनके पुत्र करन्धम हुए, जो त्रेतायुग के प्रारम्भ में वर्तमान थे |७| करन्घम के आविक्षित् नामक प्रतापशाली पुत्र

  • अत्राऽऽषत्वादाकारका दिशाभावः ।