पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७८४

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· पञ्चाशीतितमोऽध्यायः इक्ष्वाकुर्नहुषश्चैव धृष्टः शर्यातिरेव च । नरिष्यन्तस्तथा प्रांशुर्नाभागोऽरिष्ट एव च ॥ करुषश्च पृषत्रश्च नवंते मानवाः स्मृताः · ब्रह्मणा तु मनुः पूर्वं चोदिवस्तु निबोधत । स्रष्टुं प्रचक्रमे कामं निष्फलं समवर्तत अथाकरोत्पुत्रकामः परामिष्टिं प्रजापतिः । मित्रावरुणयोरंशे मनुराहुतिमावपत् तत्र दिव्याम्बरधरा दिव्याभरणभूषिता। दिव्यसंनहना चैव इडा जज्ञे इति श्रुतिः तामिलेत्यथ होवाच मनुर्दण्डधरः स्मृतः । अनुगच्छामि भद्रं ते तमिला प्रत्युवाच ह धर्मयुक्तमिदं वाच्यं पुत्रकामं प्रजापतिम् । मित्रावरुणयोरंशे जाताऽस्मि वदतां वर तयोः सकाशं यास्यामि मानो धर्मो हतोऽवधीत् । संवमुक्त्वा पुनर्देवी तयोरन्तिकमागतम् गत्वाऽन्तिकं वरारोहा प्राञ्जलिर्वाक्यमब्रवीत् | अंशेऽस्मि युवयोर्जाता देवौ किं करवाणि वाम् ॥११ मनुनैवाहमुक्ताऽस्मि अनुगच्छस्व सामिति । तथा तु वदती साध्वीमिडामाश्रित्य तावुभौ देवौ च मित्रावरुणाविदं वचनमूचतुः । अनेन तव धर्मज्ञे प्रश्रयेण दमेन च ।।१० ॥१२ ॥१३ ७६३ ॥४ ॥५ ॥६ ॥७ ॥८ HIE ने हुए। जिनके नाम इक्ष्वाकु, नहुष, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रां, (नाभाग अरिष्ट) करूष और पृषध्र थे, ये नव (?) मनु के पुत्रों के नाम से विख्यात हुए |२-४॥ सुनिये, प्राचीन काल में ब्रह्मा की प्रेरणा से मनु ने सृष्टि विस्तार को कर्म प्रारम्भ किया, पर निष्फल रहे । तदनन्तर पुत्र की कामना से प्रजापति मनु ने पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान किया, और मित्रावरुण के लिये माहुति अग्नि में छोड़ी। ऐसा सुना जाता है कि उस यज्ञ- भूमि से परम दिव्य मनोहर वस्त्रों को धारण किये, दिव्य आभरण से विभूषित दिव्य अंगों वाली इडा उत्पन्न हुई |५-७१ दण्डधारण किये हुए मनु ने ऐसा कहा जाता है कि उसे 'इला' कहकर सम्बोधित किया । तब इला पुत्र के अभिलाषी प्रजापति मनु को यह धर्म युक्त प्रत्युत्तर दिया, भद्र ! मैं आप को अनुगामिनी (आज्ञा कारिणी) हूँ, आप का कल्याण हो । बोलने वालों में श्रेष्ठ ! मैं मित्रावरुण के अंश से उत्पन्न हुई हूँ अतः उन्ही के पास जा रही हूँ, जिससे हमारा धर्म नष्ट न हो और हमारे विनाश का कारण न बने ।' इसी बात को पुनः कहकर वह दिव्य गुण सम्पन्ना इडा मित्रावरुण के पास चली गई 15-१०1 सुन्दरो उन दोनों के पास पहुँच कर हाथ जोड़ते हुए बोली, हे युगल देव ! मेरा जन्म आप दोनों के अंश से हुआ है, अतः मेरे लिए क्या आज्ञा है ? मैं आपका क्या उपकार करूँ ? मनु ने मुझसे यह कहा था कि 'तुम मेरी अनुगामिनी बनो' इस पर आप लोगों की क्या आज्ञा है ( ? ) उस परम चरित्रवती इडा के इस प्रकार कहने पर वे दोनों देवगण उसके समीप चले आये और उसे पकड़कर बोले, हे धर्म के महत्त्व को जाननेवाली ! तुम्हारे इस सत्याचरण, इन्दिय दमन, एवं प्रश्रय से हम लोग बहुत ही प्रसन्न है ।११ - १३॥ हे सुन्दर अंगों वाली महाभाग्यशालिनी, तुम