पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७८३

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७६२ वायुपुराणम् इदं तु जन्म देवानां शृणुयाद्वा पठेत वा । वैवस्वतस्य पुत्राणां सप्तानां तु महौजसाम् ॥ आपदं प्राप्य मुच्येत प्राप्नुयाच्च महद्यशः इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते वैवस्वतोत्पत्तिवर्णनं नाम चतुरशीतितमोऽध्यायः ॥८४॥ पञ्चाशीतितमोऽध्यायः श्राद्धकल्पे वैवस्वतमनुवंशवर्णनम् सूत उवाच ततो मन्वन्तरेऽतीते चाक्षुषे दैवतैः सह । वैवस्वताय महते पृथिवीराज्यमादिशत् तस्य वैवस्वतो वक्ष्ये सांप्रतस्य महात्मनः | आनुपूर्व्येण वै विप्राः कीर्त्यमानं निबोधत मनोर्वैवस्वतस्येह सर्वमादाय सांप्रतम् | मनोः प्रथमजस्याऽऽसन्नव पुत्रास्तु तत्समा: ॥८६ ॥२ ॥३ है मथवा पढ़ता है, वह आपत्तियों में फँसकर भी छुटकारा पा जाता है, और महान् यश का भागी होता है 1८४-८६। श्री वायुमहापुराण में वैवस्वतोत्पत्ति वर्णन नामक चौरासीवां अध्याय समाप्त ॥५४॥ अध्याय ८५ श्राद्धीय प्रसंग में वैवस्वत मनु के वंश का वर्णन सूत ने कहा - हे विप्रवृन्द ! तदनन्तर चाक्षुष मन्वन्तर के व्यतीत हो जाने पर, जब देवगण भी व्यतीत हो गये, तब महान् प्रभावशाली सूर्य पुत्र मनु समस्त पृथ्वी के सम्राट् पद के अधिकारी हुए |१। उन वर्तमान महात्मा सूर्यपुत्र मनु के वंश का वर्णन हम क्रमपूर्वक कर रहे है, आप लोग सुनिये । प्रथमतः उम्ही वैवस्वत के वंश को लेकर बतला रहा हूँ | सबसे बड़े मनु के उन्हीं के समान प्रभावशाली नव पुत्र मनु १. गणना से पुत्रों की संख्या दस होती ।