पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७८०

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चतुरशीतितमोऽध्यायः यमस्तु तेन शापेन भृशं पोडितमानसः | मनुना सह धर्मात्मा पितुः सर्वं न्यवेदयत् भृशं शापभयोद्विग्नः संज्ञावाक्यैविनिर्जितः । बाल्याद्वा यदि वा मोहान्मां भवांस्त्रातुमर्हसि शप्तोऽहमस्मि लोकेश जनन्या तपतां वर । तत्र प्रसादो नस्त्रातु ह्येतस्मान्महतो भयात् विवस्वानेवमुक्तस्तु यमं प्रोवाच वै प्रभः | असंशयं पुत्र महद्भविष्यत्यत्र कारणम् येन त्वामाविशत्क्रोधो धर्मज्ञं सत्यवादिनम् । न शक्यमेतन्मिथ्या तु कर्तुं मातुर्वचस्तव कृमयो मांसमादाय यास्यन्ति तु महीं तव । ततः पादं महाप्राज्ञ पुनः संप्राप्स्यसे सुखम् कृतमेवं वचः सत्यं मातुस्तव भविष्यति । शापस्य परिहारेण त्वं च त्रातो भविष्यसि आदित्यस्त्वब्रवीत्संज्ञां किमर्थं तनयेषु वै । तुल्येष्वप्यधिक: स्नेह एकस्मिन्नियते त्वया सा तत्परिहरन्ती वै नाऽऽचचक्षे विवस्वतः । आत्मना स समाधाय योगं तथ्यमपश्यत तां शप्तुकामो भगवान्नाशाय कुपितः प्रभुः । सा तत्सर्वं यथातत्त्वमाचचक्षे विवस्वतः विवस्वानथ तच्छ्रुत्वा क्रुद्धस्त्वष्टारमभ्ययात् | त्वष्टा तु तं यथान्यायमर्चयित्वा विभावसुम् ९ ७५६ ॥५६ ॥५७ ॥५८ १.५६ ॥६० ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ ॥६६ माता के इस शाप से मन में अतिशय दुःखित होकर धर्मात्मा यमराज बहुत क्षुब्ध हुए और मनु को साथ लेकर पिता से सारी बातें ज्यों को त्यों बतला दी। कहा, हे तेजस्वियों में श्रेष्ठ ! लोकेश ! संज्ञा ( माता) की बातों से हम एकदम हतप्रभ हो गये है, उसके शाप के भय से हम संत्रस्त है, अपने लड़कपन के कारण अथवा अज्ञान के कारण हमने यह अपराध किया है, पर फिर भी आपको हमारी रक्षा करनी चाहिये । हे तात ! माता ने हमें ऐसा भीषण शाप दे दिया है, इस महान् भय से हमारी रक्षा केवल आपकी कृपा से हो हो सकती है ।५६-५८। यमराज के ऐसा कहने पर सूर्य बोले - हे पुत्र ! इस दुर्घटना में अवश्य ही कोई महान कारण है, जो तुम्हारे जैसे सत्यवादी एवं धर्मात्मा के मन में क्रोध का संचार हुआ, किन्तु तुम्हारी माता के इस शापवचन को निष्फल करने की सामर्थ्य मुझमें नही है । तुम्हारे मांस को लेकर जब कृमि पृथ्वीतल पर जायेंगे, हे परमबुद्धिमान् ! तब तुम पुनः अपने पैर को विना अभ्यास के हो सुख पूर्वक प्राप्त करोगे ।५६-६१ | ऐसा करने पर तुम्हारी माता के वचन भी सत्य रह जायेंगे और शाप के परिहार हो जाने से तुम्हारी भी रक्षा हो जायगी |६२॥ यमराज से ऐसा कहने के अनन्तर आदित्य ने संज्ञा से कहा, सभी पुत्रों के समान होने पर भी तुम एक पुत्र में बहुत अधिक स्नेह क्यों करतो हो ? संज्ञा ने उस गुप्त भेद को छिपाने की इच्छा से सूर्य की इन बातों का कोई उत्तर नहीं दिया । तब सूर्य ने अपने योगबल एवं समाधि द्वारा वास्तविक स्थिति का पता लगाया । और सब बातें जानकर उन परम तेजस्वी भास्कर ने संज्ञा का विनाश करने के विचार से शाप देने का निश्चय किया, तब भयभीत होकर संज्ञा ने सूर्य से सारी बाते यथा तथ्य रूप में प्रकट कर दीं १६३-६५१ उस मृण्मयी छाया द्वारा सारी बातें अवगत कर सूर्य परम ऋद्ध हुए और