पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७७७

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७५६ वायुपुराणम् अण्डे विधाकृते त्वण्डं दृष्ट्वा त्वष्टारमब्रवीत् । नैतदण्डं भवान्नूनं मार्तण्डस्त्वं भवानघ न खल्वयं मृतोऽण्डस्थ इति स्नेहात्पिताऽब्रवीत् । तस्य तद्वचनं श्रुत्वा नामान्वर्थमुदाहरत् यन्मार्तण्डो भवेत्युक्तः पित्राइण्डे वै द्विधा कृते । तस्माद्विवस्वान्मार्तण्डः पुराणज्ञैविभाव्यते ततः प्रजाः प्रवक्ष्यामि मार्तण्डस्य विवस्वतः | विजज्ञे सवितुः संज्ञाभार्यायां तु त्रयं पुरा मनुर्यवीयान्सावणिः संज्ञायां च तथाऽश्विनौ । शनैश्चरश्च सप्तैते मार्तण्डस्याऽऽत्मजाः स्मृताः 1 विवस्वान्कश्यपाज्जज्ञे दाक्षायण्यां महायशाः | तस्य भार्याऽभवत्त्वाष्ट्री महादेवी विवस्वतः ॥ सुरेणुरिति विख्याता पुनः संज्ञेति विश्रुता सा तु भार्या भगवतो मार्तण्डस्यातितेजसः । नातुष्यद्भर्तृ रूपेण रूपयौवनशालिनी आदित्यस्य हि तद्रूपं मार्तण्डस्य हि तेजसा । गात्रेषु प्रतिरुद्धं वै नातिकान्तमिवाभवत् न खत्वयं मृतो ह्यण्डे इति स्नेहात्तमनवोत् । अज्ञानः कश्यपः स्नेहान्मार्तण्ड इति चोच्यते ॥२७ ॥२८ ॥२६ ॥३० ॥३१ ॥३२ ॥३३ ॥३४ ॥३५ तक जब वह अण्डा फूटा नहीं, तव उसे विश्वकर्मा ने फोड़ दिया। उस समय अण्डे को फोड़ते देख गर्भ हत्या के भय से भीत होकर कश्यप जी बहुत दुःखी हुए |२६| और उस अण्डे को दो भागों में फूटी देख विश्वकर्मा से बोले, यह सामान्य अण्डा नहीं है, फिर उस अण्डस्थ जीव से चोले- 'हे निष्पाप ! इस मरे हुए अण्डे से तुम पुनः उत्पन्न हो । निश्चय हो यह अण्डस्य प्राणी मृत नही हुआ है' — इतनी सी बातें स्नेहपूर्वक पिता ने कही। कश्यप की इतनी बातें सुनकर मार्तण्ड ( मरे हुए अण्डे से उपन्न होना ) नाम की सार्थकता बतलाई जाती है । पिता ने अण्डे के दो भागों में विभक्त हो जाने पर भी 'मार्तण्ड हो जाओ' - ऐसी बातें कही थी, उसी के आधार पर पुराणों के जानने वाले सूर्य को मार्तण्ड कहते हैं ।२७-२६ | अब इसके बाद उस मृत अण्डे से उत्पन्न होने वाले सूर्य की संततियों का वर्णन कर रहा हूँ । बहुत दिन बीते, उन सूर्य की संज्ञा नामक पत्नी में तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे |३०| संज्ञा में उक्त दोनों अश्विनी कुमार और उनसे छोटे सार्वणि मनु नामक पुत्र हुए थे । तदनन्तर शनैश्चर हुए, ये सात (?) मार्तण्ड के आत्मज कहे जाते हैं |३१| महान् यशस्वी विवस्वान् दाक्षायणी में मपि कश्यप के संयोग से उत्पन्न हुए थे। उनकी पत्नी विश्वकर्मा की पुत्री महादेवी सुरेणु थीं, जो संज्ञा नाम से भी विख्यात थीं |३२| अमित तेजस्वी भगवान् मार्तण्ड की पत्नी, परमरूपवती एवं यौवनवती सुरेणु देवी की सन्तुष्टि पतिरूप में उनसे नही होती थी । प्रचुर तेज से देदीप्यमान मदितिपुत्र मार्तण्ड के उस शरीर को अपने अंगों में वह नही सहन कर पाती थी, अतः वह परम मनोहर नही लगते थे । ३३-३४॥ यतः कश्यप ने स्नेह पूर्वक विना जाने तूझे ही यह कहा था कि 'इस अण्डे में अवस्थित ये निश्चय ही मरे नही है, अतः उससे उत्पन्न होने के कारण वे मार्तण्ड नाम से पुकारे जाते है |३५| उन कश्यपनन्दन