पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७७६

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चतुरशीतितमोऽध्यायः यः सर्वेषां विमानानि देवतानां चकार है | मानुषाश्चोपजीवन्ति यस्य शिल्पं महात्मनः प्रहादी विश्रुता तस्य त्वष्टुः पत्नी विरोचना | विरोचनस्य भगिनी माता त्रिशिरसस्तु सा देवचार्यस्य महतो विश्वकर्माऽस्य धीमतः । विश्वकर्मात्मजश्चैव विश्वकर्मा मयः स्मृतः सुरेणुरिति विख्याता स्वसा तस्य यवीयसी | त्वाष्ट्री सा सवितुर्भार्या पुनः संज्ञेति विश्रुता || असूत तपसा सा तु मनुं ज्येष्ठं विवस्वतः । यमौ पुनरसूतासौ यमं च यमुनां च ह ॥ स तु गत्वा कुरुन्देवी वडवारूपधारिणी । सवितुश्चाश्वरूपस्य नासिकाभ्यां तु तौ स्मृतौ असूत सा महाभागा त्वन्तरीक्षेऽश्विनौ किल । नासत्यं चैव दस्रं च मार्तण्डस्याऽऽत्मजावुभौ ऋषय ऊचु: . कस्मान्मार्तण्ड इत्येष विवस्वानुच्यते बुधैः । किमर्थं साइश्वरूपा वै नासिकाभ्यामसूयत ॥ एतद्वेदितुमिच्छामस्तत्त्वं विब्रूहि पृच्छताम् सूत उवाच चिरोत्पन्नमतिभिन्न मण्डं त्वष्टा विदारितम् | दृष्वा गर्भवधानीतः कश्यपो दुःखितोऽभवत् ७५५ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ की रचना की थी । उन्ही परम महात्मा द्वारा प्रचालित शिल्प कर्म के आश्रय से मनुष्य लोग आज भी अपनो जीविका चलाते है ।१५-१८। उन विश्वकर्मा की पत्नी विरोचना थी, जो प्रह्लादी नाम से भी विख्यात थी, वह विरोचन की भगिनी और त्रिशिरा की माता थी | परम बुद्धिमान् विश्वकर्मा देवताओं में शिल्पकर्म के आचार्य थे, उनका पुत्र मय भी उसी प्रकार शिल्प कर्म में निपुण होने के कारण विश्वकर्मा नाम से विख्यात हुआ । उस मयकी छोटी बहन, विश्वकर्मा की पुत्री सुरेणु नाम से विख्यात थी, जो संज्ञा नाम से सूर्य की पत्नी हुई | उसने अपने परम तपोबल द्वारा सूर्य के ज्येष्ठ पुत्र मनु को उत्पन्न किया। सदनन्तर उसके यम नामक पुत्र और यमुना नाम की एक पुत्री - दोनों को जुड़वाँ उत्पन्न किया |१६-२२। फिर उस देवी ने कुरु देश में जाकर वडवा (घोड़ी) का रूप धारण किया और अश्वरूप धारण करनेवाले सूर्य के संयोग से आकादा में अपनी नासिका के दोनों छिद्रों द्वारा नासत्य और दस्र नामक दो पुत्रों को उत्पन्न किया, जो दोनों मार्तण्ड (सूर्य के पुत्र ) कहे जाते हैं, ऐसी प्रसिद्धि है |२३-२४॥ ऋषियों ने पूछा- पण्डित लोग सूर्य को मार्तण्ड किस लिये कहा करते हैं, किस कारणवश संज्ञा ने वडवा का रूप धारण किया ओर किस प्रकार अपनी नासिका के छिद्रों से पुत्र उत्पन्न किया - इस बात को हम लोग सुनना चाहते हैं— विस्तारपूर्वक बतलाये ॥२५॥ सूतजी ने कहा- प्राचीनकाल में सूर्य देव एक अण्डे के रूप में उत्पन्न हुए थे, बहुत दिनो }