पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७६४

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शीतितमोऽध्यायः पुनीयादेवशं तु गौर्यामुत्पादितः सुतः । माताहांस्तु षड्भुय इति तस्य फलं स्मृतम् फलं वृषस्य वक्ष्यामि गदतो मे निबोधत । वृषोत्स्रष्टा पुनात्येव दशातीतान्दशावरान् यत्किचिस्पृश्यते तोयैरुत्तीर्णेन जलान्महीम् । वृषोत्सर्गे पितॄणां तु अक्षयं समुदाहृतम् यद्यद्धि संस्पृशेत्तोयं लागूलादिभिरन्ततः । सर्वं तदक्षयं तस्य पितॄणां नात्र संशयः शृङ्गे खुरैर्वा यभूमिमुल्लिखत्यनिक्षं वृपः | मधुकुल्याः पितृस्तस्य अक्षयास्ता भवन्ति बँ ( x सहस्त्रनत्वमात्रेण तडाकेन यथा श्रुतिः । तृप्तिस्तृप्तिः पितॄणां वै तद्वृषस्याधिकोच्यते यो ददाति गुर्डेसिश्रांस्तिलान्वं श्राद्धकर्मणि | मधुना मधुमिश्रान्वा अक्षयं सर्वमेव तत् बृहस्पतिरुवाच न ब्राह्मणात्परीक्षेत सदा देये तु मानवः । दैवे कर्मणि पित्र्ये च श्रूयते वै परीक्षणम् सर्ववेदव्रतस्नाताः पङ्क्तीनां पावना द्विजाः | ये च भाष्यविदो मुख्या ये च व्याकरणे रताः अधोयते पुराणं च धर्मशास्त्रं तथैव च । त्रिणाचिकेतपश्चाग्निस्त्रिसुपर्णः षडङ्गवित् ७४३ ॥४४ ॥४५ ॥४६ ॥४७ ॥४८ ॥४६ ॥५० ।।५१ ॥५२ ॥५३ अतिरिक्त मामा के परिवार में छः को पवित्र करता है- ऐसा फल कहा गया है |४३-४४। अब वृष का फल बतला रहा हूँ, सुनिये। वृषोत्सर्ग करने वाला दस पूर्वजों और दस वाद में उत्पन्न होने वाले पुरुषों को पवित्र करता है । जल से तैर कर पृथ्वी पर आने वाले वृष की पूँछ से गिरने वाले जल विन्दुओं द्वारा वृषोत्सर्ग कर्म मे जो वस्तुएँ स्पर्श की जाती हैं, वे पितरो के लिए अक्षयफलदायिनी कही जाती है ।४५-४६। इस प्रकार अन्त तक वृप के लांगूल आदि से गिरने वाले जल द्वारा जो-जो वस्तुएँ स्पर्श की जाती है, वे सब पितरों को अक्षय तृप्ति प्रदान करने वाली है - इसमें सन्देह नही । वह वृष अपने सीगों तथा खुरों से जो भूमि खोदता है, वह भूमि अक्षय मधु की नहर के रूप में उसके दाता के) पितरों को प्राप्त होती है । एक सहस्र नल्व ( एक नत्व वरावर चार सो हाथ के) में विस्तृत तड़ाग के खनाने से पितरों को जो तृप्ति सुनो जाती है, उससे अधिक तृप्ति वृषोत्सर्ग से होती है । गुडमिश्रित तिलों, मधु मिश्रित तिलों से अथवा मधु से जो श्राद्धकर्म किया जाता है, वह सब अक्षय फलदायी होता है ।४७-५०१ बृहस्पति ने कहा- मनुष्य को चाहिये कि वह सर्वदा दान कर्म में ब्राह्मणों की परीक्षा न करे दैव कर्म में तथा पितरो के कर्म में ब्राह्मणों की परीक्षा सुनी जाती है |५१॥ सभी समस्त वेदों के व्रती अर्थात् वेदाभ्यास परायण, वेदों के पारगामी पंक्तिपावन, भाष्य के जानने वाले मुख्यतः व्याकरण वेत्ता, पुराणों और धर्मशास्त्रों के अध्ययन में निरत रहने वाले, नचिकेता की तीनों विधाओं के अध्येता, पंचारित के X धनुश्चिह्नान्तर्गत ग्रन्थो घ. पुस्तके नास्ति |