पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७६३

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७४२ वायुपुराणम् पुत्रेभ्योऽपि दुहितृभ्य इण्टेभ्योऽपि च सर्वशः । दद्यात्पिण्डं प्रयत्नेन बुद्धिमान्सुसमाहितः त्रिदिवं यान्ति ते सर्वे पिण्डदा इति च श्रुतिः । ब्रह्महा च कृतघ्नश्च महापातकिनश्च ये ते सर्वे निष्कृति यान्ति गयायां पिण्डपातनात् । ब्रह्मघ्नस्य सुरापस्य वालवृद्धगुरुद्रुहः नाशमायाति वै पापं गयायामनुयाति यः | यन्नाम्ना पातयेत्पिण्डं तं नयेद्रब्रह्म शाश्वतम् दुर्लभं त्रिषु लोकेषु नास्ति तीर्थ गयासमम् | नरकस्था दिवं प्रान्ति स्वर्गस्था मोक्षमाप्नुयुः अपि नस्ते भविष्यन्ति कुले सन्मार्गशोलिनः | गयामुपेत्य ये पिण्डान्दास्यन्त्यस्माकमादरात् मकरे वर्तमाने तु ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः । प्रेतपक्षे च चैत्रे च दुर्लभं पिण्डपातनम् अधिमासे जन्मदिने चास्ते च गुरुशुक्रयोः । न त्यक्तव्यं गयाश्राद्धं सिंहस्ये च बृहस्पतौ ॥ गयायां सर्वकालेषु पिण्डं दद्याद्विचक्षणः) ( * गयायामक्षयं श्राद्धं जपहोमतपांसि च । पितृक्षयाहे ते पुत्र तस्मात्तत्रालयं स्मृतम् ॥३५ ॥३६ ।।३७ ॥३८ ॥३६ ॥४० ॥४१

॥४२ ।।४३ गोत्र में उत्पन्न होने वाले जो हो, उनके लिए भी यही विधान है। पुत्रों, कन्याओं एवं इष्टमित्रों सब के लिए सावधान होकर बुद्धिमान् पुरुष को प्रयत्नपूर्वक पिण्डदान करना चाहिये |३४-३५। वे सभी पिण्डदान करने वाले स्वर्ग लोक प्राप्त करते है ऐसा गुना जाता है। ब्रह्म हत्या करने वाले, कृतघ्न एव महान् पाप कर्म करने वाले, जो लोग है वे सब भी गया मे पिण्डदान करने से निस्तार पा जाते है । ब्रह्म हत्या करने वाले, मदिरा पान करने वाले, बालक, वृद्ध एवं गुरु से द्रोह करने वाले इन सबों के भी पाप नष्ट हो जाते है, यदि वे गया की यात्रा करें। जिसका नाम लेकर पिण्डदान किया जाता है, वह शाश्वत ब्रह्म पद की प्राप्ति करता है |३६-३८ तीनों लोकों मे गया के समान दुर्लभ तीर्थ कोई नही है । उसके प्रभाव से नरक में रहने वाले स्वर्ग जाते है और स्वर्ग रहने वाले मोदा को प्राप्त करते है | ३३॥ मनुष्य अपने मन में यह शुभ कल्पना करते रहते है कि हमारे कुल में भी ऐसे सन्मार्गगामी पुत्र उत्पन्न होगे, जो गया की यात्रा कर आदरपूर्वक हमें पिण्डदान करेंगे। मकर राशि में सूर्य के होने पर, चन्द्रग्रहण और सूर्य ग्रहण के अवसर पर, पितृपक्ष में, और चैत्र मास में पिण्डदान दुर्लभ है, अर्थात् इन अवसरों पर गया में पिण्डदान का महान् फल है। अधिक मास मे, जन्मदिन में, गुरु और शुक्र के अस्त होने पर, सिंह राशि में बृहस्पति के आने पर गया का श्राद्ध न छोड़ना चाहिये । वुद्धिमान लोग तो सर्वदा गया मे पिण्डदान करते है |४०-४२॥ हे पुत्र ! गया तोर्थ मे पितरों की निधनतिथि के अवसर पर श्राद्ध का अक्षय फल होता है, जप, हवन एवं तप का भी अक्षयफल कहा जाता है। गौरी पत्नी में समुत्पन्न पुत्र इक्कीस पीढ़ी को पवित्र करता है । इसके धनुश्चिह्नान्तर्गतग्रन्थः ख. पुस्तके नास्ति |