पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७६१

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धायुपुराणम् बृहस्पतिरुवाच ( + अन्दमध्ये गयाश्राद्धं यः करोति च मानवः । सर्वान्कामान्स लभते स्वर्गलोके महीयते यदि पुत्रो गयां गच्छ्रे च्छ्राद्धं कुर्यादतन्द्रितः | कामान्स लभते दिव्यान्मोक्षोपायं च विन्दति उद्यतस्तु गयां गन्तुं श्राद्धं कृत्वा विधानतः । विधाय कर्पटीवेषं ग्रामस्यापि प्रदक्षिणम् ततो ग्रामान्तरं गत्वा श्राद्धशेषस्य भोजनम् । कृत्वा प्रदक्षिणं गच्छेप्रतिग्रह विवर्जितः केशश्मश्रुनखादीनां वपनं न प्रशस्यते । अतो न कार्यं वपनं श्राद्धार्थी ना गयासदा ( ? ) वित्तशाठ्यं न कुर्वीत गया श्राद्धे सदा नरः । वित्तशाठ्यं तु कुर्वाणो न तीर्थफलभाग्यवत् ब्रह्मकुण्डे प्रभासे च ब्रह्मवेद्यां तथैव च | प्रेतपर्वतमासाद्य श्राद्धं कुर्याद्विधानतः उत्तरे मानसे चैव यत्र सैनाकसंज्ञकाः । उदीच्यां कनखले चैव दक्षिणे मानसे तथा स्नात्वा कृत्वा तथा श्राद्धं पितृलोके समुद्धरेत् । स्वर्गपातालमर्त्येषु नास्ति तीर्थसमं भुवि तेषु श्राद्धं प्रकुर्वीत यदीच्छेत्परमां गतिम् | धर्मारण्यं ततो गच्छेदाद्यं दृष्ट्वा गदाधरम् ७४० ॥१४ ॥१६ ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२० ॥२१ ॥२२ ॥२३ - बृहरपति ने कहा - जो मनुष्य साल भर में गया जाकर श्राद्ध करता है, वह अपनी समस्त कामनाओं को प्राप्त करता है और स्वर्गलोक में पूजित होता है | १४ | यदि पुत्र गया की यात्रा करता है, और वहाँ पर सावधानी से श्राद्ध करता है, वह समस्त मनोरथों को सुन्दर रूप में प्राप्त करता है और मोक्ष के उपायों को प्राप्त करता है । गया जाने के लिये उद्यत होकर सर्व प्रथम विधिपूर्वक श्राद्ध कर कापायवस्त्र धारण कर अपने ग्राम की भी प्रदक्षिणा करनी चाहिये ।१५-१६। तदनन्तर दूसरे ग्राम में जाकर श्राद्ध से शेष बचे हुए का भोजन करे | प्रदक्षिणा कर बिना किसी का दान आदि लिए गमन करे | गया को यात्रा में केश, दाढ़ी मूंछ आदि का मुण्डन प्रशंसनीय नहीं कहा गया है, अतएव श्राद्ध करनेवाले को चाहिये कि वहा गया यात्रा के समय मुण्डन न कराये ।१७-१८। मनुष्य को चाहिये कि गया श्राद्ध के लिये कभी कंजूसी न करे, कंजूसी करने पर तीर्थ यात्रा का वास्तविक फल नही मिलता । ब्रह्मकुण्ड, प्रभास, ब्रह्मवेदो, और प्रेतपर्वत पर विधिपूर्वक श्राद्ध करना चाहिये ।१९-२०। उत्तर मानस तीर्थ में भी श्राद्ध करना चाहिये, जहाँ मैनाक पर्वतों की श्रेणियाँ है। उत्तर दिशा में कनखल तथा दक्षिण दिशा में मानस स्थान पर स्नान कर श्राद्ध करने से पितरों का उद्धार हो जाता है । स्वर्ग लोक, पाताल लोक तथा मर्त्यलोक में इन ती के समान कोई दूसरा नही है | २१-२२। यदि श्रेष्ठ गति प्राप्त करने की इच्छा है, तो इन तीर्थों में श्राद्ध करना चाहिये । सर्वप्रथम गदाधर का दर्शन कर घर्मारण्य + अन्दमध्य इत्या रम्यः दयाविचक्षण इत्यन्तग्रन्थ ख पुस्तके वर्ततेऽत्रेव स्थले गयामाहात्म्यमीप तत्रिचत्वारिंशाध्यायादुपरितनं द्रष्टव्यम् ।