पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७६०

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त्र्यशीतितमोऽध्यायः रौरवेण तु प्रोयन्ते नव मासान्पितामहाः | गवथस्य तु मांसेन तृप्तिः स्याद्दशमासिकी कूर्मस्य चैव मांसेन मासानेकादशैव तु । श्राद्धमेवं विजानीयाद्गव्यं संवत्सरं भदेत् तथा गव्यसंमायुक्तं पायसं मधुसर्पिषा | वध्रोणसस्य मांसेन तृप्तिर्द्वादशवार्षिकी आनन्त्याय भवेद्युक्तं खाङ्मयांसः पितृक्षये | कृष्णच्छागस्तथा गोधा अनन्त्यायैव कल्प्यते अत्र गाथाः पितृगीताः कीर्तयन्ति पुराविदः । तास्तेऽहं संप्रवक्ष्यामि यथावत्संनिबोधत अपि नः स्वकुले जायाद्योऽलं दद्यात्रयोदशीम् | पायसं मधुर्सापर्ध्या छायायां कुञ्जरस्य तु आजेन सर्वलोहेन वर्षासु च मघासु च । एष्टव्या वहवः पुत्रा यद्येकोऽपि गयां व्रजेत् ॥ गौरी वाऽप्युहहेद्भार्या नीलं वा वृषमुत्सृजेत् शंयुरुवाच गयादीनां फलं तात प्रब्रूहि मम पृच्छतः । पितॄणां चैव यत्पुण्यं निखिलेन ब्रवीहि मे ७३८ ॥६ ॥७ ॥८ ॥ ॥१० ॥११ ॥१२ ॥१३ आठ मास तक सन्तुष्ट रहते हैं - ऐसा वतलाया जाता है । रुरु ( एक विशेष मृग जाति) के मांस से पितामह गण नव मास तक तृप्त रहते है | गवय के मांस से दस मास की तृप्ति होती है ।५-६। कछुए के मास से ग्यारह मास की तृप्ति होती है । गोरस से एक वर्ष की तृप्ति होती है | मधु; घृत, दूध में बने हुए व्यंजन तथा अन्य गोरस से भी एक वर्ष की तृप्ति होती है । वधीणस के मांस से जो श्राद्ध किया जाता है, उससे बारह वर्ष तक तक तृप्ति रहती है | ८ | पितरों के लिये गैंडे का मांस श्राद्ध में अनन्त काल तृप्ति करता है । इसी प्रकार काले बकरे तथा गोह का मांस भी अनन्त काल तक तृप्ति करता है |६| अब इसके बाद प्राचीन काल के वृत्तान्तों के जानने वाले पितरों द्वारा गाई हुई माथाओं का जो वर्णन लोग करते हैं, उन्हें आपलोगों से बतला रहा हूँ, यथावत् सुनिये । पितरगण ऐसा कहते है कि हमारे वंश में कोई ऐसा सुपुत्र पैदा हो, जो हाथी को छाया में त्रयोदशी तिथि को मधु, घृत, एवं दूध में बनाये हुए व्यंजनों तथा अन्नों का दान करे एवं वर्षा ऋतु में विशेषतया मघा नक्षत्र में सर्वलोह अज (बकरा ) का मांस दे | बहुत पुत्रों को कामना करनी चाहिये, उसमें से एक भी गया चला जायेगा, एक भी सुकुमारी गौर वर्ण की कन्या का विवाह कर देगा, अर्थात् कन्यादान कर देगा अथवा एक भी नीले बैल का ( हम लोगों के उद्देश्य से) त्याम करेगा तो हम लोगों की मनः कामनाएं पूर्ण हो जायेंगी |१०-१२श शंयु ने कहा – हे तात ! गया आदि तीर्थों का माहात्म्य हम आप से पूछ रहे हैं, बतलाइये, वहीं पर पितरों के उद्देश्य से जो कुछ कार्य किया जाता है उससे क्या पुण्य प्राप्त होता है, उसे हमें भायोपान्त बतलाइये |१३|

  • इदमघं नास्ति घ. पुस्तके |