पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७५९

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७३८ वायुपुराणम् अथ त्र्यशीतितमोऽध्यायः श्राहकल्पे भिन्नकालिकतृप्तिसाधनद्रव्य विशेषगयाश्राद्धा- दिफलब्राह्मणपरीक्षादिकथनम् ( + शंयुरुवाच किंचिद्वृत्तं पितॄणां तु घिनोति वदतां वर । किं हि स्विच्चिररात्राय किं चाऽऽनन्त्याय कल्प्यते) ॥१ वृहस्पतिरुवाच हवींषि श्राद्धकाले तु यानि श्राद्धविदो विदुः । तानि मे शृणु सर्वाणि फलं चैषां यथावलम् ॥२ तिलैनहियवैर्मापरद्भिर्मूलफलेन च । दत्तेन मासं प्रीयन्ते श्रद्धेन तु पितामहाः ॥३ मत्स्यैः प्रोणन्ति द्वौ मासौ त्रीन्मासान्हारिणेन तु | शाशं तु चतुरो मासान्पश्च प्रोणाति शाकुनम् ॥४ वाराहेण तु षण्मासांश्छागलं साप्तमासिकम् | आष्टमासिकमित्युक्तं यच्च पार्वतकं भवेत् ॥५ अध्याय ८३ श्राद्ध में भिन्न भिन्न समय में तृप्ति के साधनभूत विशेष द्रव्य, गया में श्राद्ध के फल, तथा ब्राह्मण की परीक्षा आदि शंयु ने कहा – हे बोलने वालों मे श्रेष्ठ ! कौन-सी वस्तु वितरो को ( थोड़े दिनों तक ) तृप्ति देने वाली है ? कौन-सी वस्तु चिरकाल तक तृप्ति देती है ? और कौन-सी वस्तु अनंत काल तक तृप्ति देती है ? ॥१॥ वृहस्पति ने कहा - श्राद्ध के माहात्म्य को जाननेवाले श्राद्धादि मे जिन हविप् द्रव्यों को उक्त फल- दायो जानते है, उन सव की क्या और कितनी सामर्थ्य है, इसे में विस्तार पूर्वक बतला रहा हूँ, सुनिये ॥२॥ श्राद्ध में तिल, जौ, उड़द, जल, मूल और फलों के दान करने से पितामह (पितर ) लोग एक मास तक सन्तुष्ट रहते है | मछली से दो मास तक सन्तुष्ट रहते हैं, हरिण के मांस से तीन मास तक तूप्त रहते है इसी प्रकार खरगोश के मास से चार मास और पक्षी के मांस से पाँच मास तक सन्तुष्ट रहते है |३-४१ शूकर के मांस से छ. मास, बकरे के मांस से सात मास, और पृषत् (सफेद चित्ती वाला एक विशेष मृग) के मांस से + धनुश्चिह्नान्तर्गलग्रन्थो घ. पुस्तके नास्ति |