एकाशीतितमोऽध्यायः एवमाप्यायितः सोमस्त्रील्लोकान्वारयिष्यति | सिद्धचारणगन्धर्वैः स्तूयमानस्तु नित्यशः स्तवैः पुष्पैर्मनोज्ञैश्च सर्वकास परिच्छदैः । नृत्यवादित्रगीतैश्च अप्सरोभिः सहस्रशः उपक्रोविसानैस्तु पितृभक्तं दृढव्रतम् । स्तुवन्ति देवगन्धर्वाः सिद्धसंघाश्च तं सदा पितृभक्तस्त्वसावस्यां सर्वान्कासानवाप्नुयात् । प्रत्यक्षर्माचतास्तेन भवन्ति पितरः सदा पितृदेवा सघा यस्मात्तस्मात्तास्वक्षयं स्मृतम् । पित्र्यं कुर्वन्ति तस्यां तु विशेषेण विचक्षणाः तस्मान्मघां वै वाञ्छन्ति पितरो नित्यमेव हि । पितृदैवतभक्ता ये तेऽपि यान्ति परां गतिम् इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्तं श्राद्धकल्पे तिथिविशेपे श्राद्धफलवर्णनं नामकाशीतितमोऽध्यायः ॥ ७० ॥ ७३५ ॥२१ ॥२२ ॥२३ ॥२४ ॥२५ ॥२६ इस प्रकार तर्पित होकर सोमदेव तीनों लोकों को धारण करेंगे । दृढ़व्रत परायण, पितरों में भक्ति रखनेवाले व्यक्ति की सिद्ध, चारण और गन्धर्वगण नित्य स्तुति करते है |२१| उनके साथ सहस्रों अप्सराएँ अपने नाच, गान, वाद्य, स्तुति, मनोहर पुष्प निचय एवं सभी प्रकार के अभिलषित वस्त्रादिकों से उसे प्रसन्न करती हैं । देवता गन्धर्व एवं सिद्धों के समूह उनको सर्वदा स्तुति करते रहते है, अनेक छोटे छोटे क्रोडा के विमान उसकी सेवा में उपस्थित रहते हैं। पितरों में भक्ति रखनेवाला मनुष्य अमावास्या को सभी मनोरथ प्राप्त करता है क्योंकि सर्वदा उस तिथि को पितरगण उससे प्रत्यक्षतः पूजा प्राप्त करते है | २२-२४| मघा नक्षत्र पितरों को अभीष्ट सिद्धि देनेवाला है, अतः उक्त नक्षत्र के दिन किया गया श्राद्ध अक्षय कहा जाता है । इसीलिये विवेकशील लोग विशेषतया उसी नक्षत्र में पितरों के श्राद्धादि कर्म सम्पन्न करते है । यही कारण है कि पितरगण भी उसे सर्वदा अधिक पसन्द करते हैं । पितरों और देवतानों में जो केवल भक्ति रखते हैं, वे भी परमगति प्राप्त करते हैं |२५-२६ श्री वायुमहापुराण के श्राद्धकल्प मे तिथिविशेष सम्वन्धी श्राद्धफल वर्णन नामक इक्यासीवाँ अध्याय समाप्त ॥५१॥