पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७५५

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७३४ वायुपुराणम् ॥१२ ॥१३ ॥१४ चतुर्थ्या कुरुते श्राद्धं शत्रोश्छिद्राणि पश्यति । पञ्चम्यां वै प्रकुर्वाणः प्राप्नोति महतीं श्रियम् षष्ठ्यां श्राद्धानि कुर्वाणं द्विजास्तं पूजयन्त्युत | कुरुते यस्तु सप्तम्यां श्राद्धानि सततं नरः महासत्रमवाप्नोति गणानामधिपो भवेत् | संपूर्णामृद्धिमाप्नोति योऽष्टम्यां कुरुते नरः श्राद्धं नवस्यां कुर्वाणं ऐश्वर्यं काङ्क्षितां स्त्रियम् | कुर्वन्दशम्यां तु नरो ब्राह्मों श्रियमवाप्नुयात् ||१५ वेदांश्चैवाऽऽनुयात्सर्वान्प्रणाशमेनसस्तथा । एकादश्यां परं दानमैश्वयं सततं तथा ॥ द्वादश्यां राष्ट्रलाभं तु जयामाहुर्वसूनि च प्रजां बुद्धि पशुमेधां स्वातन्त्र्यं पुष्टिमुत्तमाम् । दीर्घमायुरथैश्वर्यं कुर्वाणस्तु त्रयोदशीम् युवानव सृता यस्य गृहे तेषां प्रदापयेत् । शस्त्रेण तु हता ये वै तेषां दद्याच्चतुर्दशीम् तथा विपमजातानां यमलानां तु सर्वशः | अमावास्यां प्रयत्नेन श्राद्धं कुर्याच्छुचिः सदा सर्वान्कामानवाप्नोति स्वर्गमानन्त्यमश्नुते । ऋतं दद्यादमावास्यां सोममाप्यायनं महत् ॥१६ ॥१७ ॥१८ ॥१६ ॥२० शत्रुओं का नाश करनेवाली तथा पापनाशिनी है । जो चतुर्थी तिथि को श्राद्ध करता है वह शत्रुओं का छिद्र देखता है, अर्थात् उसे शत्रु को समस्त कूट चालों का ज्ञान हो जाता है। पन्चमी तिथि को श्राद्ध करनेवाला उत्तम लक्ष्मी की प्राप्ति करता है ।११-१२। जो पष्ठीतिथि को श्राद्धादि कर्मों को सम्पन्न करते हैं उनकी पूजा देवता लोग करते है । जो मनुष्य सर्वदा सप्तमी तिथि को श्राद्धादि कार्य करते है, वे महान् यज्ञों के पुण्यफल प्राप्त करते है और गणों के स्वामी होते है । जो मनुष्य अष्टमी को श्राद्ध करता है वह सम्पूर्ण समृद्धियाँ प्राप्त करता है | नवमीतिथि को श्राद्ध कर्म करनेवाले को प्रचुर ऐश्वर्य एवं मम के अनुसार चलनेवाली स्त्री की प्राप्ति होती है | दशमी तिथि को श्राद्ध करनेवाला मनुष्य ब्रह्मत्व को लक्ष्मी प्राप्त करता है |१३-१५॥ एकादशी तिथि को श्राद्धादि का दान सर्वश्रेष्ठ दान है जो उक्त तिथि को श्राद्धादि का दान करता है, वह समस्त वेदों को प्राप्त करता है, उसके सम्पूर्ण पापकर्मो का विनाश हो जाता है तथा निरन्तर ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। द्वादशीतिथि को श्राद्ध करने से राष्ट्र का कल्याण तथा अन्नो की प्राप्ति होती कही गई है। त्रयोदशी तिथि को श्राद्धादि कर्म करने से सन्तति, बुद्धि, पशु घारणाशक्ति स्वतन्त्रता, उत्तम पुष्टि, दीर्घायु तथा ऐश्वथ, की प्राप्ति होती है। जिसके घर के जवान लोग मर गये हों उसे चाहिये कि उन सबों के उद्देश्य से चतुर्दशी- तिथि को श्राद्ध करे । इसी प्रकार हथियारों के द्वारा जिसको मृत्यु हुई हो, उनके लिये भी चतुर्दशी को श्राद्धकर्म करे । १६-१८। इसी प्रकार समस्त विषम उत्पन्न होनेवालों ( अर्थात् तीन कन्याओं के बाद जो पुत्र उत्पन्न होते हैं, अथवा तीन पुत्रों के बाद जो कन्याये उत्पन्न होती है) तथा जुड़वाँ उत्पन्न होनेवालों के लिये सर्वदा पवित्र होकर अमावास्यातिथि को प्रयत्न पूर्वक श्राद्ध करना चाहिये । जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म सम्पन्न करते हैं, ने समस्त मनोरथो को प्राप्त करते है और अनन्तकाल पर्यन्त स्वर्ग का उपभोग करते हैं। अमावास्या तिथि को ब्राह्मण को भोजन देना चाहिये, चन्द्रमा के लिये भी तर्पण करना चाहिये, इसका महान् फल होता है ।१९-२० ।