पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७५७

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७३६ वायुपुराणम् यशीतितमोऽध्यायः श्राहकल्पे नक्षत्रविशेषे श्राद्धफलम् बृहस्पतिरुवाच यमस्तु यानि श्राद्धानि प्रोवाच शिवविन्दवे | तानि मे शृणु कार्येन नक्षत्रेषु पृथक्पृथक् श्राद्धं यः कृत्तिकायोगे करोति सततं नरः । अग्नीनाधाय सापत्यो जायते स गतज्वरः अपत्यकामो रोहिण्यां सौम्येनौजस्विता भवेत् । प्रायशः क्रूरकर्मा तु चाऽऽर्द्रायां श्रद्धमाचरेत् क्षेत्रभागी भवेत्पुत्री आद्धं कुर्वन्पुनर्वसौ | धनधान्यसमाकीर्णः पुत्रपौत्रसमाकुलः तुष्टिकामः पुनस्लिध्ये श्राद्धं कुर्वीत मानवः | आश्लेषासु पितॄनर्च्य वीरान्पुत्रानवाप्नुयात् श्रेष्ठो भवति ज्ञातीनां मघासु श्राद्धमाचरन् । फाल्गुनीषु पितॄनर्च्य सौभाग्यं लभते लभते नरः ॥६ प्रधानशीलः सापत्य उत्तरासु करोति यः । स सत्सु मुख्यो भवति हस्ते यस्तर्पयेत्पितॄन् १५ ॥७ अध्याय ८२ विशेष नक्षत्रों में किये गये श्राद्धों के फल ॥१ ॥२ ॥३ ॥४ बृहस्पति बोले- विशेष नक्षत्रों में पृथक्-पृथक् श्राद्ध के करने से क्या फल होते हैं -- इस विषय में यमराज ने शिवविन्द से जो कुछ श्राद्धीय चर्चाएं की है, उन सब को • बतला रहा हूँ, सुनो । जो मनुष्य सर्वदा कृत्तिका नक्षत्र के योग में श्राद्ध करता है, और अग्नि की स्थापना करता है, वह अपनी सन्ततियों समेत चिन्ताओं एवं व्याधियों से मुक्त होता है |१-२॥ सन्तान को कामना से रोहिणी में श्राद्ध करना चाहिये । मृगशिरा नक्षत्र में श्राद्ध करने से तेजस्विता का लाभ होता है । आर्द्रा में श्राद्धकार्य प्राय: क्रूरकर्म करने वाले ही करते हैं । पुनर्वसु नक्षत्र में श्राद्ध करनेवाला क्षेत्र का अधिकारी और पुत्रवान् होता है। धनधान्यादि से समन्वित तथा पुत्र पौत्रादि से संयुक्त होता है |३-४। सन्तोष लाभ को अभिलाषा से मनुष्य को पुष्य नक्षत्र में श्राद्ध करना चाहिये । अश्लेषा में पितरों की पूजा करके मनुष्य वीर पुत्रों का लाभ करता है | मघा में श्राद्ध करनेवाला अपनी जाति में सर्वश्रेष्ठ होता है | फाल्गुनी नक्षत्रों मे पितरों की पूजा कर मनुष्य सौभाग्य की प्राप्ति करता है ।५-६। उत्तरा नक्षत्रों में श्राद्ध करनेवाले अपने सन्तान समेत समाज का प्रमुख व्यक्ति होता है | जो हस्त नक्षत्र मे पितरों की पूजा करता है वह सत्पुरुषों मे अग्रगण्य होता है। जो चित्रा