पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७५१

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वायुपुराणम् ॥४३ ॥४४ ॥४५ कृशरान्मधुपर्क च पयः पायसमेव च । स्निग्धांत्र पूपान्यो दद्यादग्निष्टोमस्य यत्फलम् दधि गव्यमसंसृष्टं भक्ष्यान्नानाविधांस्तथा । तदन्नं शोचति श्राद्धे वर्षासु च मधासु च घृतेन भोजयेद्विशान्घृतं भूमौ ससुत्सृजेत् । गयायां हस्तिनश्चैव दत्वा श्राद्धे न शोचति ओदनं वायसं सर्पिर्मधुमूलफलानि च । भक्ष्यांश्च विविधान्दत्त्वा प्रेत्य चेह च मोदते शर्कराक्षीरसंयुक्तं पृथुकं नित्यमक्षयम् | स्युश्च संवत्सरं प्रोताः कृशरैर्मसुरेण च सक्तुलाजास्तथा पूपाः कुल्मापव्यञ्जनैस्तथा । सर्पिःस्निग्धानि हृद्यानि दना सक्तूंस्तु भोजयेत् ॥ श्राद्धेष्वेतानि यो दद्यात्पद्मानि लभते निधिम् ।।४६ ।।४७ ॥४८ ।।४६ ॥५० ॥५१ ७३० नवसस्यानि यो दद्याच्छ्राद्धं सत्कृत्य यत्नतः । सर्वभोगानवाप्नोति पूज्यते च दिवं गतः भक्ष्यभोज्यानि चोष्णाणि पेयलेहावराणि च | सर्वश्रेष्ठानि यो दद्यात्सर्वश्रेष्ठो भवेन्नरः वैश्वदेवं च सौम्यं च खाड्गमांसं परं हवि | विपाणं वर्जयेत्वागं असूयां नाशयामहे वस्तुओं को श्राद्ध के अवसर पर जो व्यक्ति दान करता है वह अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त करता है ।४२-४३। वर्षा ऋतु में श्राद्ध के अवसर पर विशेषतया मघा नक्षत्र मे- पितरगण दही शुद्ध गोरस, विविध प्रकार के भक्ष्य पदार्थ की चिन्ता करते है अर्थात् मधानक्षत्र में श्राद्ध करते समय इन पदार्थों को देना चाहिये । श्राद्ध करते समय घृत के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये, भूमि पर घृत छोड़ना चाहिये, गया तीर्थ में हाथी दान करके पितरों के विषय मे चिन्ता छूट जाती है ।४४-४५ | भात, दुग्ध मे बने हुए पदार्थ, घृत, मधु, मूल, फल, विविध प्रकार को भोजन सामग्री - इन सव वस्तुओं को श्राद्ध के अवसर पर दान करने से इह लोक तथा परलोक मे आनन्द की प्राप्ति होती है। दूध मिश्रित शक्कर ओर चिउड़ा का दान कभी नष्ट होनेवाला नहीं है । मसूर और खिचड़ी के दान से पितर गण एक वर्ष तक सन्तुष्ट रहते है। इसी प्रकार सत्तू, धान के लारे, पूआ और कुल्माष (कुल्थो के बने हुए व्यंजनों) से भी एक वर्ष तक पितरगण तृप्त रहते है । घृत, मनोहर और हृदय को लुभाने वाली अन्यान्य खाद्य सामाग्री तथा दही के साथ सत्तू का भोजन श्राद्ध के अवसर पर देना चाहिये । जो व्यक्ति इन सव वस्तुओं को श्राद्ध के अवसर पर दान करता है, वह कई पद्म का खजाना प्राप्त करता है।४६-४८। जो सत्कार एवं यत्नपूर्वक श्राद्ध के अवसर पर नवीन अन्न का दान करता है वह सभी प्रकार के भोगो को प्राप्त करता है, पूजित होता है तथा स्वर्ग प्राप्त करता है |४३ | जो मनुष्य विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ, भक्ष्य सामग्रियाँ, तथा पीने और चाटने की क्षेष्ठ सामग्रियाँ श्रद्धकाल में देता है, वह सर्वश्रेष्ठ होता है । इस श्राद्ध में वेश्वदेव और सोम को उनका भाग देना चाहिये, गंडे के मांस की अहुति देनी चाहिये- वही सर्व श्रेष्ठ ह्वि है । केवल गैडे की सोग छोड़ देनी चाहिए-इसे वर्जित कर हम पितरों की घृणा को नष्ट करते है । अर्थात्