पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७५०

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अशीतितमोऽध्यायः दत्त्वैतान्मोदते स्वर्गे नित्यमाचन्द्रतारकम् | आस्तीर्णशयनं दत्वा राजसूयफलं लभेत् पितरस्तस्य तुष्यन्ति स्वर्ग चाऽऽनन्त्यमश्नुते । राजभिः पूज्यते चापि धनधान्यैश्च वर्धते ऊर्जाकौशेयवस्त्राणि तथा प्रवरकम्बलौ । अजिनं काञ्चनं पट्ट प्रवेणीमृगलोमकम् दानान्येतानि विप्रेभ्यो भोजयित्वा यथाविधि | प्राप्नोति श्रद्दधानस्तु वाजपेयशतं फलम् बहुचो नार्यः सुरूपास्तु पुत्रा त्याच किंकराः | वशे तिष्ठन्ति भूतानि अस्मॅिल्लोके त्वनामयम्॥३६ कोशेयं क्षौमकार्पासं दुकूलमहतं तथा । श्रद्वेष्वेतानि यो दद्यात्कामानाप्नोति पुष्कलान् अलक्ष्मी विनुत्याशु तमः सूर्योदये यथा । भ्राजते स विमानाचे नक्षत्रेष्विव चन्द्रमाः सर्वदेवमयं नासो सर्वदेवँस्त्वभिष्टुतम् | वस्त्राभावे क्रिया नास्ति यज्ञा वेदास्तपांसि च तस्माद्वस्त्राणि देयानि श्राद्धकाले विशेषतः । तानि सर्वाण्यवाप्नोति यज्ञवेदतपांसि च नित्यं श्राद्धेषु यो दद्यात्प्रयतस्तत्परायणः । सर्वान्कामानवाप्नोति स्वर्ग राज्यं तथैव च सर्वकामसमृद्धस्य यज्ञस्य फलमश्नुते | भक्ष्यान्धानाः करम्भांश्च पिष्टकान्तशर्कराः । ७२६ ॥३२ ॥३३ ॥३४ ॥३७ ॥३८ ॥३६ ॥४० ॥४१ ॥४२

अनस्त काल तक स्वर्ग में निवास करता है। राजाओं द्वारा वह पूजित होता है, उसके धन धाग्यादि की वृद्धि

होती है ।३०-३३॥ ऊनी, रेशमी वस्त्र, श्रेष्ठ, कम्बल, चर्म, सुबर्ण निर्मित पट्ट और मृगलोम इन सब वस्तुओं को विधिपूर्वक ब्राह्मणों को देना चाहिये । इन दानों पर श्रद्धा रखनेवाले सो वाजपेय यज्ञों का फल प्राप्त करते हैं |३४-३५। इस लोक में बहुतेरी सुन्दरी स्त्रियाँ, पुत्र, पुत्र, एवं सेवक गण उसके वश में रहते है, बहुत से लोग उसके अधीन रहते हैं, और वह सर्वदा नीरोग रहता है । जो व्यक्ति नवीन रेशमी वस्त्र, सूक्ष्म सूती वस्त्र, सुन्दर साड़ियों को श्राद्धों के अवसर पर दान करता है, वह अपने समस्त मनोरथों को प्राप्त करता है । उसको सारो विपत्तियाँ इस प्रकार दूर हो जाती है, जैसे सूर्योदय होने पर अन्धकार | नक्षत्रों में चन्द्रमा के समान देवविमानों में वह अग्रसर होकर सुशोभित होता है |३६-३८१ वस्त्र सभी देवताओं द्वारा प्रशंसित तथा सर्व देवमय है, उस सर्वश्रेष्ठ वस्त्र के अभाव में कोई क्रिया सम्पन्न नही होती, न तो यह सम्पन्न होता है और न तपस्या ही सफल होती है। इसलिये श्राद्ध के अवसर पर विशेष रूप से वस्त्रों का दान करना चाहिये । ऐसा करने वाला समस्त यज्ञों, वेदों और तपस्याओं का फल प्राप्त करता है । जो व्यक्ति श्राद्ध के अवसर पर इन्द्रियों को वश में रखकर वस्त्रों का दान करता है वह समस्त कामनाओं को प्राप्त करता है, स्वर्ग और राज्य प्राप्त करता है | ३६-४११ सभी कामनाओं से सम्पन्न यज्ञ का फल प्राप्त करता है। विविध प्रकार के भक्ष्य पदार्थ, धान्य करम्भ ( दही- मिश्रित सत्तू), पेठ, घृत और शक्कर, खिचड़ी, मधुपर्क, दुग्ध, दुग्ध में बने हुए पदार्थ, सुन्दर पूआ - इन सब फा०-६२