पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७२२

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सप्तसप्ततितमोऽध्यायः ' कुमारधारा तत्रैव दृष्ठा पापप्रणाशनी | यानासनं च तत्रैव सद्यः स्याद्यत्प्रदृश्यते शैलकीर्तिपुराभ्यासे कामानाप्नोति पुष्कलान् । अदृश्यः सर्वभूतानां देववच्चरते महीम् काश्यपस्य महातीर्थं कालसपिरिति श्रुतम् । तत्र श्राद्धानि देयानि नित्यमक्षयमिच्छता अक्षयं तु भवेच्छ्राद्धं शालग्रामसमन्ततः । दृष्ट्या न दृश्यते तत्र प्रत्यक्षमकृतात्मनाम् प्रत्यादेशो हाशिष्टानां शिष्टानां च निवेशनम् । तत्र चैव ह्रदे पुण्य दिव्यो वै नागराद्यतः पिण्डं गृह्णाति हि सतां न गृह्णात्यसतां हि सः | अतिप्रदीप्तैर्भुजगैर्भोक्तुमन्नं न शक्यते ( ? ) प्रत्यक्षं दृश्यते धर्मस्तीर्थयारमेनयोर्द्धयोर्द्धयोः । देवदारुवने चापि चारयेस्तं निदर्शनम् विधूतानि तु पापानि दृश्यन्ते सुकृतात्मनाम् । भागीरथ्यां प्रयागे च नित्यभक्षयमुच्यते काजञ्जरे दशार्णायां नैमिषे कुरुजाङ्गले | वाराणस्यां नगर्या तु देयं श्राद्धं तु यत्नतः तस्यां योगेश्वरो नित्यं त्ततस्यां दत्तभक्षयम् | दत्त्वा चैतेषु पूतः स्याच्छ्राद्धमानन्त्यमेव च जपो होमस्तथा ध्यानं यत्किचित्सुत्सुकृत भवेत् । लौहित्ये वैतरण्यां वै स्वर्णवेद्यां तथैव च ७०१ ॥८५ ॥८६ ॥८७ ॥८८ ॥८६ ॥६० ॥६१ ॥६२ ॥६३ ॥६४ ॥६५ जा सकते हैं । वहीं पर पापों को नष्ट करनेवाली कुमार धाग का दर्शन होता है वहाँ यान ( वाहन ) एवं आसन का लाभ करते हुये शीघ्र ही देखा जाता है |८४-८५ शेलकीर्तित नामक पवित्र तीर्थ में स्नान करके मनुष्य अपने सम्पूर्ण मनोरथो को प्राप्त करता है । सभी प्राणियों से अदृश्य होकर वह देवताओ की तरह पृथ्वी पर विचरण करता है | ८६ | काश्यप का परम प्रसिद्ध कालसपि नामक महान तीर्थ सुना गया है, अक्षय श्राद्ध के इच्छुक मनुष्यों को वहाँ नित्य श्राद्धदान करना चाहिये । शालग्राम के चारो ओर किया गया श्राद्धकर्म अक्षय रूप में प्राप्त होता है, किन्तु पापात्माओं को वह परम पवित्र तीर्थ प्रत्यक्ष होने पर भी आँखों से नहीं दिखाई पडता ।८७-८८। उस पवित्र तीर्थ में अशिष्ट लोगों का जाना वर्जित है, केवल शिष्टजन ही उसमें प्रवेश पा सकते है । वहाँ के पुण्य सरोवर में निवास करनेवाला नागराज केवल सत्पुरुषों द्वारा दिये गये पिण्डों का भक्षण करता है, और असत्पुरुषों द्वारा दिये गये पिण्डों का भक्षण नहीं करता । वह अपने साथ रहनेवाले असंख्य प्रचण्ड सर्पो समेत भी उस पापात्मा के अन्न का भक्षण करने में अशक्त रह जाता है। इन उपर्युक्त दोनों पवित्र तीर्थो मे धर्म को प्रत्यक्ष देखा जाता है, देवदारु वन में भी यह निदर्शन पाया जाता है, सुकृती जनो के पाप तो यहाँ दूर होते दिखाई पड़ते है । भागीरथी और प्रयाग मे भी श्राद्ध का अक्षय फल कहा गया है। कालंजर, दशार्ण, नैमिष कुरुजाङ्गल, तथा वाराणसी नगरी - इन पवित्र तीर्थो में मनुष्य को प्रयत्न करके श्राद्धकर्म सम्पन्न करना चाहिये । वाराणसी नगरी मे योगेश्वर शंकर का नित्य निवास रहता है, अतः उसमे पिण्डदान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है इन पवित्र तीर्थो में पिण्डदान करके मनुष्य पवित्रात्मा हो जाता है, उसका श्राद्ध अनन्त फल दायी होता है। इसी प्रकार जप, हवन एवं अन्यान्य सत्कर्मो का भी अयक्षफल वहाँ होता है । लोहित्य वैतरणी, एवं