पृष्ठम्:वायुपुराणम्.djvu/७१९

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वायुपुराणम् सिन्धुसागरसंभेदे तथा पश्चनदेऽक्षयम् । कोरकात्मा ततः पुण्यो मण्डवायां च पर्वते देयं सप्तरदे श्राद्धं मानसे च विशेषतः । महाकूटे च यन्दे च गिरौ त्रिफ्फुदे तथा संध्यायां च महावेद्यां दृश्यते महदद्भुतम् | अश्रद्धधानान्नाभ्येति साइन्येति च धृतव्रतान् जातवेदःशिला तत्र साक्षादग्नेः सनातनी । श्राद्धानि चाग्निकार्यं च तत्र कुर्यात्सदाऽक्षयम् संश्रयित्वैकमेकेन सायाह्न प्रति नित्यशः । तस्मिन्देयं सदा श्राद्धं पितॄणामक्षयार्थिना कृतात्मा वाकृतात्मा वा यत्र विज्ञायते नरः । स्वर्ग्यमार्गप्रदं नाम तीर्थं सद्योवरप्रदम् || वैराण्युत्सृज्य तस्मिस्तु दिवं सप्तर्पयो गताः ६६८ ॥५६ ॥५७ ॥५८ ॥५६ ॥६० ॥६१ ६२ अद्यापि तानि दृश्यन्ते वैराण्येव गतानि तु | स्नात्वा स्वर्गमवाप्नोति तस्सिस्तीर्थोत्तमे नरः ख्यातमायतनं तत्र नन्दिसिद्धनिषेवितम् | नन्दीश्वरस्य यो मूर्तिदुराचारर्न दृश्यन्ते ॥६३ दृश्यन्ते काञ्चना यूपाः संचिण्ये (दृष्टे) भास्करोदये । कृत्वा प्रदक्षिण तांस्तु गच्छन्त्यन्तहिता दिवम् ॥ सर्वतश्च कुरुक्षेत्रं सुतीर्थं च विशेषतः | पुण्यं सनत्कुमारस्य योगेशस्य महात्मनः ॥ कोर्त्यते च तिलान्दत्त्वा पितॄणां वे सदाऽक्षयम् E ॥६४ है, कीरकात्मा नामक पुण्य तीर्थ भी है, पर्वत पर अवस्थित पण्डवा तीर्थ में भी यक्षय फल होती है । सप्तरद तीर्थं में विशेषतया मानसतंर्थ मे श्राद्धकर्म अवश्य करना चाहिये । महाकूट, चन्द एव त्रिककूद पर्वत पर भी श्राद्धकर्म करना चाहिये १५३-०७। महावेदो मे सन्ध्या के अवसर पर महान आश्चर्य दिखाई पड़ता है, किन्तु वह अश्रद्धा रखनेवाले नास्तिकों को नही प्राप्त होती, केवल व्रतपरायण श्रद्धालु हो को प्राप्ति होती है वहाँ पर जातवेद नामक अग्नि को सनातन काल से चली आनेवाली एक शिता है, उस पर श्राद्धादि एवं अग्निहोत्रादि कार्य सर्वदा करने चाहिये, क्योकि उनका अक्षय फल होता है ५८५६ पितरों को अक्षयरूप में श्राद्ध देने के इच्छुक व्यक्ति को इन तीर्थों मे सदा मायंकाल के समय श्राद्ध करना चाहिये। यहां पर कृतात्मा ( पुण्यात्मा) और अकृतात्मा (पापात्मा) जन मालूम पड़ जाते हैं। वहीं स्वर्ग्यमार्ग प्रद नामक शीघ्र वर प्रदान करनेवाला सरोवर है ।६०-६१। जिसमें अपने पारस्परिक वैर भावों में छोड़कर मप्तविंगण स्वगंगामी हुए थे आज भी उनके विगत वैरभाव के चिह्न वहाँ दिखाई पड़ते हैं। उस उत्तम तीर्थ मे स्नान कर मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करता है |६२। वहीं पर नन्दिकेश्वर एव सिद्धगणो द्वारा सुसेवित प्रसिद्ध आयतन (स्थान) है। वहाँ नन्दिकेश्वर की जो मूर्ति है, वह दुराचारियो को नही दिखाई पड़ती १६३ | भास्कर के उदय होने के अवसर पर वहीं सुवर्ण के यूप (यज्ञ के खंभे) दिखलाई पड़ते है। उनकी प्रदक्षिणा करके लोग अन्तहित होकर स्वर्गलोक को चले जाते है | योगपरायण महात्मा सनत्कुमार का पुण्यप्रद कुरुक्षेत्र सभी क्षेत्रो मे श्रेष्ठ माना गया है। ऐसा कहा जाता एतदघंस्थानेऽय पाठः ख. पुस्तके - 'तस्मिन्देशे तथा श्राद्धे पितृणामज्ञक्षयार्थिनाम्' इति ।